Yogamudrasana

योगमुद्रासन भली प्रकार सिद्ध होता है तब कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है । पेट के गैस की बीमारी दूर होती है । पेट एवं आँतों की सब शिकायतें दूर होती हैं । कलेजा, फेफडे, आदि यथा स्थान रहते हैं । हृदय मजबूत बनता है । रक्त के विकार दूर होते हैं । कुष्ठ और यौनविकार नष्ट होते हैं । पेट बडा हो तो अन्दर दब जाता है। शरीर मजबूत बनता है । मानसिक शक्ति बढती है । योगमुद्रासन से उदरपटल सशक्त बनता है । पेट के अंगों को अपने स्थान में टिके रहने में सहायता मिलती है । नाडीतन्त्र और खास करके कमर के नाडी-मण्डल को बल मिलता है ।

इस आसन में सामान्यतया जहाँ एिडयाँ लगती हैं वहाँ कब्ज के अंग होते हैं । उन पर दबाव पडने से आँतों में उत्तेजना आती है । पुराना कब्ज दूर होता है । अंगों की स्थानभ्रष्टता के कारण होनेवाला कब्ज भी, अंग अपने स्थान में पुनः यथावत् स्थित हो जाने से नष्ट हो जाता है । धातु की दुर्बलता में योगमुद्रासन खूब लाभदायक है ।

पद्मासन लगाकर दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जायें । बायें हाथ से दाहिने हाथ की कलाई पकडें । दोनों हाथों को खींचकर कमर तथा रीढ के मिलन स्थान पर ले जायें । अब रेचक करके कुम्भक करें । श्वास को रोककर शरीर को आगे झुकाकर भूमि पर टेक दें । फिर धीरे धीरे सिर को उठाकर शरीर को पुनः सीधा कर दें और पूरक करें। प्रारंभ में यह आसन कठिन लगे तो सुखासन या सिद्धासन में बैठकर करें । पूर्ण लाभ तो पद्मासन में बैठकर करने से ही होता है ।

पाचनतन्त्र के अंगों की स्थानभ्रष्टता ठीक करने के लिए यदि यह आसन करते हों तो केवल पाँच-दस सेकण्ड तक ही करें, एक बैठक में तीन से पाँच बार । सामान्यतया यह आसन तीन मिनट तक करना चाहिए । आध्यात्मिक उद्देश्य से योगमुद्रासन करते हों तो समय की अवधि रुचि और शक्ति के अनुसार बढायें ।

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योगमुद्रासन

Yogamudrasana

योगमुद्रासन भली प्रकार सिद्ध होता है तब कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है । पेट के गैस की बीमारी दूर होती है । पेट एवं आँतों की सब शिकायतें दूर होती हैं । कलेजा, फेफडे, आदि यथा स्थान रहते हैं । हृदय मजबूत बनता है । रक्त के विकार दूर होते हैं । कुष्ठ और यौनविकार नष्ट होते हैं । पेट बडा हो तो अन्दर दब जाता है। शरीर मजबूत बनता है । मानसिक शक्ति बढती है । योगमुद्रासन से उदरपटल सशक्त बनता है । पेट के अंगों को अपने स्थान में टिके रहने में सहायता मिलती है । नाडीतन्त्र और खास करके कमर के नाडी-मण्डल को बल मिलता है ।

इस आसन में सामान्यतया जहाँ एिडयाँ लगती हैं वहाँ कब्ज के अंग होते हैं । उन पर दबाव पडने से आँतों में उत्तेजना आती है । पुराना कब्ज दूर होता है । अंगों की स्थानभ्रष्टता के कारण होनेवाला कब्ज भी, अंग अपने स्थान में पुनः यथावत् स्थित हो जाने से नष्ट हो जाता है । धातु की दुर्बलता में योगमुद्रासन खूब लाभदायक है ।

पद्मासन लगाकर दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जायें । बायें हाथ से दाहिने हाथ की कलाई पकडें । दोनों हाथों को खींचकर कमर तथा रीढ के मिलन स्थान पर ले जायें । अब रेचक करके कुम्भक करें । श्वास को रोककर शरीर को आगे झुकाकर भूमि पर टेक दें । फिर धीरे धीरे सिर को उठाकर शरीर को पुनः सीधा कर दें और पूरक करें। प्रारंभ में यह आसन कठिन लगे तो सुखासन या सिद्धासन में बैठकर करें । पूर्ण लाभ तो पद्मासन में बैठकर करने से ही होता है ।

पाचनतन्त्र के अंगों की स्थानभ्रष्टता ठीक करने के लिए यदि यह आसन करते हों तो केवल पाँच-दस सेकण्ड तक ही करें, एक बैठक में तीन से पाँच बार । सामान्यतया यह आसन तीन मिनट तक करना चाहिए । आध्यात्मिक उद्देश्य से योगमुद्रासन करते हों तो समय की अवधि रुचि और शक्ति के अनुसार बढायें ।

યોગમુદ્રાસન

Yogamudrasana

પદ્માસનમાં બેસો. બંને પગની એડી નાભીની બંને બાજુ પેટને દબાવીને રાખવી. બંને હાથ પીઠ પાછળ લઈ જઈ ડાબા હાથ વડે જમણા હાથનું કાંડું પકડવું. હવે શ્વાસ બહાર કાઢતાં કાઢતાં કમરમાંથી આગળ વાંકા વળતા જવું, પણ એમ કરતાં પગ કે બઠક પરથી સહેજ પણ ઉંચા થવું નહીં. એટલે કે બેઠકથી જમીનને ચુસ્ત રીતે ચોંટેલા રહેવું. એ રીતે વાંકા વળીને લલાટ અને નાક જમીનને અડાડવાં. શરુઆતમાં ન અડે તો જેટલા વાંકા વળી શકાય તેટલા વળવું. ધીમે ધીમે મહાવરો વધતાં નાક અને કપાળ જમીનને અડકાડી શકાશે. પણ વધુ પડતું બળ કરીને પહેલા જ પ્રયત્ને અડકાડી દેવાની જીદ કરવી નહીં.

જેમનું પેટ લચી પડ્યું હોય, પેટના સ્નાયુઓ ઢીલા પડી ગયા હોય કે પેટ ઘણું વધી ગયું હોય એમણે વધુ ફાયદો મેળવવા હાથ પાછળ લઈ જવાને બદલે પગની એડીઓ ઉપર રાખીને આગળ નમી જમીનને નાક-કપાળ અડાડવાં. આથી પેડુના ભાગ પર વધારે દબાણ આવવાને લીધે પેટના સ્નાયુઓને વધુ કસરત મળશે. આ આસનમાં એકી સાથે લાંબો સમય રહેવા કરતાં એને વધુ વખત કરવાથી વધુ લાભ થાય છે.

આ આસનમાં પેટના સ્નાયુઓને કસરત મળતી હોવાથી કબજીયાત મટે છે. જઠરાગ્ની સતેજ થાય છે, આથી પાચનક્રીયામાં લાભ થાય છે. સ્વાદુપીંડ સક્રીય થવાથી ડાયાબીટીસમાં ફાયદો થાય છે. બ્રહ્મચર્યપાલનમાં પણ એ સહાય કરે છે.

ઉપચારો યોગ્ય આરોગ્ય ચીકીત્સકની સલાહ અને દેખરેખ હેઠળ કરવા. આ માહીતી માત્ર શૈક્ષણીક હેતુસર આપવામાં આવે છે.
સ્ત્રોત: ગાંડાભાઈ વલ્લભ બ્લોગ


योगमुद्रासन भली प्रकार सिद्ध होता है तब कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है । पेट के गैस की बीमारी दूर होती है । पेट एवं आँतों की सब शिकायतें दूर होती हैं । कलेजा, फेफडे, आदि यथा स्थान रहते हैं । हृदय मजबूत बनता है । रक्त के विकार दूर होते हैं । कुष्ठ और यौनविकार नष्ट होते हैं । पेट बडा हो तो अन्दर दब जाता है। शरीर मजबूत बनता है । मानसिक शक्ति बढती है । योगमुद्रासन से उदरपटल सशक्त बनता है । पेट के अंगों को अपने स्थान में टिके रहने में सहायता मिलती है । नाडीतन्त्र और खास करके कमर के नाडी-मण्डल को बल मिलता है ।

इस आसन में सामान्यतया जहाँ एिडयाँ लगती हैं वहाँ कब्ज के अंग होते हैं । उन पर दबाव पडने से आँतों में उत्तेजना आती है । पुराना कब्ज दूर होता है । अंगों की स्थानभ्रष्टता के कारण होनेवाला कब्ज भी, अंग अपने स्थान में पुनः यथावत् स्थित हो जाने से नष्ट हो जाता है । धातु की दुर्बलता में योगमुद्रासन खूब लाभदायक है ।

पद्मासन लगाकर दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जायें । बायें हाथ से दाहिने हाथ की कलाई पकडें । दोनों हाथों को खींचकर कमर तथा रीढ के मिलन स्थान पर ले जायें । अब रेचक करके कुम्भक करें । श्वास को रोककर शरीर को आगे झुकाकर भूमि पर टेक दें । फिर धीरे धीरे सिर को उठाकर शरीर को पुनः सीधा कर दें और पूरक करें। प्रारंभ में यह आसन कठिन लगे तो सुखासन या सिद्धासन में बैठकर करें । पूर्ण लाभ तो पद्मासन में बैठकर करने से ही होता है ।

पाचनतन्त्र के अंगों की स्थानभ्रष्टता ठीक करने के लिए यदि यह आसन करते हों तो केवल पाँच-दस सेकण्ड तक ही करें, एक बैठक में तीन से पाँच बार । सामान्यतया यह आसन तीन मिनट तक करना चाहिए । आध्यात्मिक उद्देश्य से योगमुद्रासन करते हों तो समय की अवधि रुचि और शक्ति के अनुसार बढायें ।