अपान मुद्रा

विधि-
सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब मध्यमा और अनामिका उंगली को आपस में मिलाकर अंगूठे के अग्र भाग से स्पर्श कीजिए ।अन्य दो  उंगलियों को सीधा रखिए।
हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

वरुण मुद्रा

वरुण मुद्रा जल की कमी से होने वाले सभी तरह के रोगों से बचाती है। इस मुद्रा का आप कभी भी और कहीं भी अभ्यास कर सकते हैं।  छोटी या चीठी अँगुली के सिरे को अँगूठे के सिरे से स्पर्श करते हुए दबाएँ। बाकी की तीन अँगुलियों को सीधा करके रखें। इसे वरुण मुद्रा कहते हैं।  यह शरीर के जल तत्व के संतुलन को बनाए रखती है। आँत्रशोथ तथा स्नायु के दर्द और संकोचन को रोकती है। तीस दिनों के लिए पाँच से तीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करने से यह मुद्रा अत्यधिक पसीना आने और त्वचा रोग के इलाज में सहायक सिद्ध हो सकती है। यह खून शुद्ध कर उसके सुचारु संचालन में

शून्य मुद्रा

शून्य मुद्रा  -मध्यमा उंगली आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखने से शून्य मुद्रा बनती हैं। 

शून्य मुद्रा करने का समय व अवधि : शून्य मुद्रा को प्रतिदिन तीन बार प्रातः,दोपहर,सायं 15-15 मिनट के लिए करना चाहिए | एक बार में भी 45 मिनट तक कर सकते हैं |

प्राण मुद्रा

प्राण मुद्रा : कनिष्ठिका और अनामिका (सबसे छोटी तथा उसके पास वाली) उंगलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाने पर प्राण मुद्रा बनती है| शेष दो उंगलियां सीधी रहती हैं| प्राण मुद्रा एक अत्यधिक महत्वूर्ण मुद्रा है| रहस्यमय है जिसके संबंध में ऋषि-मुनियों ने अनन्तकाल तक तप, स्वाध्याय एवं आत्मसाधना करते हुए कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किए हैं| इसका अभ्यास प्रारंभ करते ही मानो शरीर में प्राण शक्ति को तीव्रता से उत्पन्न करनेवाला डायनमो चलने लगता है| फिर ज्यों-ज्यों प्राण शक्ति रूपी बिजली शरीर की बैटरी को चार्ज करने लगता है, त्यों-त्यों चेतना का अनुभव होने लगता है| प्राण शक्ति का संचार करनेवाल

चिन्मय मुद्रा

विधि-
सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब तर्जनी उंगली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से स्पर्श कीजिए व बाकी तीन उंगलियों को मुट्ठी बाँधने की स्थिति में मोड़ लीजिए  ।
हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

लाभ-

चिन और ज्ञान मुद्रा

चिन और ज्ञान मुद्रा -ज्ञान अर्थात बुद्धि-इस मुद्रा के प्रतिदिन अभ्यास से बुद्धि के स्तर पर वृद्धि होती है। ध्यान और प्राणायाम करते समय इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करना चाहिए । अंगूठे एवं तर्जनी अंगुली के स्पर्श से जो मुद्रा बनती है उसे ज्ञान मुद्रा कहते हैं | तर्जनी अर्थात प्रथम उँगली को अँगूठे के नुकीले भाग से स्पर्श करायें। शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रहें।हाथ की तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली) अंगुली के अग्रभाग (सिरे) को अंगूठे के अग्रभाग के साथ मिलाकर रखने और हल्का-सा दबाव देने से ज्ञान मुद्रा बनती है| बाकी उंगलियां सहज रूप से सीधी रखें| इस मुद्रा का सम्पूर्ण स्नायुमण्डल और मस्तिष

योग मुद्रा

मुद्रा हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में एक प्रतीकात्मक या आनुष्ठानिक भाव या भाव-भंगिमा है।जबकि कुछ मुद्राओं में पूरा शरीर शामिल रहता है, लेकिन ज्यादातर मुद्राएं हाथों और उंगलियों से की जाती हैं। एक मुद्रा एक आध्यात्मिक भाव-भंगिमा है और भारतीय धर्म तथा धर्म और ताओवाद की परंपराओं के प्रतिमा शास्त्र व आध्यात्मिक कर्म में नियोजित प्रामाणिकता की एक ऊर्जावान छाप है। नियमित तांत्रिक अनुष्ठानों में एक सौ आठ मुद्राओं का प्रयोग होता है।

ध्यान मुद्रा

विभिन्न योग परंपरा और अलग-अलग योग शिक्षकों की परंपराओं के भीतर ध्यान (meditation mudra)के लिए अलग-अलग शारीरिक मुद्राओं का सुझाव दिया जाता है। कई लोग लेटकर और खड़े होकर भी ध्यान करते हैं तो यह भी ध्‍यान मुद्रा ही मानी जाती है। हालांकि पद्मासन और सिद्धासन में बैठकर किया जाना वाला ध्यान ही सबसे प्रसिद्ध हैं।

ध्यान मुद्रा (meditation pose or posture) के दो अर्थ है पहला कि हम कौन से आसन में बैठें और दूसरा कि यह एक प्रकार की हस्त मुद्रा का नाम भी है जिसे ध्यान मुद्रा कहते हैं। पद्मासन या ‍सिद्धासन में आंखें बंदकर बैठना ध्यान आसन कहलाता है।

लिंग मुद्रा

लिंग मुद्रा एक ऐसी मुद्रा है जिसमें हथेली को इंटरलॉक करके शरीर के भीतर विभिन्न तत्वों पर ध्यान केंद्रित करने और उनके प्रवाह को बनाए रखने में सक्षम होती है। हाथ का अंगूठा मनुष्य के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतीक होता है। लिंग मुद्रा अग्नि तत्व को मजबूत बनाने का कार्य करती है। आमतौर पर लिंग मुद्रा को ऊष्मा  और ऊर्जा  की मुद्रा कहा जाता है। लिंग संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ पुरुष के जननांग से है। लिंग मुद्रा शरीर की ऊष्मा ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करती है। लिंग मुद्रा, शरीर के भीतर गर्मी को केंद्रित करने काम करती है। इसे लिंग मुद्रा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह शरीर के अंदर के अग्नि के

अपन वायु मुद्रा

प्राण स्थान मुख्य रूप से हृदय में आंनद केंद्र (अनाहत चक्र) में है। प्राण नाभि से लेकर कठं-पर्यन्त फैला हुआ है। प्राण का कार्य श्वास-प्रश्वास करना, खाया हुआ भोजन पकाना, भोजन के रस को अलग-अलग इकाइयों में विभक्त करना, भोजन से रस बनाना, रस से अन्य धातुओं का निर्माण करना है। अपान का स्थान स्वास्थय केन्द्र और शक्ति केन्द्र है, योग में जिन्हें स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधर चक्र कहा जाता है। अपान का कार्य मल, मूत्र, वीर्य, रज और गर्भ को बाहर निकालना है। सोना, बैठना, उठना, चलना आदि गतिमय स्थितियों में सहयोग करना है। जैसे अर्जन जीवन के लिए जरूरी है, वैसे ही विर्सजन भी जीवन के लिए अनिर्वाय है। शरीर

सूर्य मुद्रा

सूर्य मुद्रा -सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब अनामिका उंगली को अंगूठे की जड़ में स्पर्श कीजिए एवं अंगूठे से उसके प्रथम पोर को दवाते हुए बाकी तीन उंगलियाँ सीधी रखिए।
हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

आदि मुद्रा

विधि-
सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब अंगूठे को अंदर की और रखते हुए बाकी चारों उंगलियों को अंदर की और मुट्ठी बाँधने की स्थिति में मोड़ लीजिए सभी उंगलियों के अग्र भाग को हथेली से स्पर्श करते हुए । हाथों को घुटनो / जांघों पर रखेंगे  ।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर व मुद्रा पर  केंद्रित रखिए।

लाभ-

प्रथ्वी मुद्रा

प्रथ्वी मुद्रा -अनामिका उंगली पृथ्वी  तत्व का प्रतिनिधित्व करती है।

सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब अनामिका उंगली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से स्पर्श कीजिए।
हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
अन्य तीन उंगलियों को सीधा रखिए।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

वायु मुद्रा

सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए। हाथ की तर्जनी उंगली के अग्र भाग को अंगूठे की जड़ में स्पर्श कीजिए और बाकी तीन उंगलियों को सीधा रखिए आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे। यह वायु के असंतुलन से होने वाले सभी रोगों से बचाती है। दो माह तक लगातार इसका अभ्यास करने से वायु विकार दूर हो जाता है। सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है।


अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

कुछ देर इसी स्थिति में बैठिए