मुद्रा हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में एक प्रतीकात्मक या आनुष्ठानिक भाव या भाव-भंगिमा है।जबकि कुछ मुद्राओं में पूरा शरीर शामिल रहता है, लेकिन ज्यादातर मुद्राएं हाथों और उंगलियों से की जाती हैं। एक मुद्रा एक आध्यात्मिक भाव-भंगिमा है और भारतीय धर्म तथा धर्म और ताओवाद की परंपराओं के प्रतिमा शास्त्र व आध्यात्मिक कर्म में नियोजित प्रामाणिकता की एक ऊर्जावान छाप है। नियमित तांत्रिक अनुष्ठानों में एक सौ आठ मुद्राओं का प्रयोग होता है।

योग में, आम तौर पर जब वज्रासन की मुद्रा में बैठा जाता है, तब सांस के साथ शामिल शरीर के विभिन्न भागों को संतुलित रखने के लिए और शरीर में प्राण के प्रवाह को प्रभावित करने के लिए मुद्राओं का प्रयोग प्राणायाम (सांस लेने के योगिक व्यायाम) के संयोजन के साथ किया जाता है।

नवंबर 2009 में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में प्रकाशित एक शोध आलेख में दिखाया गया है कि हाथ की मुद्राएं मस्तिष्क के उसी क्षेत्र को उत्तेजित या प्रोत्साहित करती हैं जो भाषा की हैं।

डॉक्टरों के अनुसार हमारे हाथों की उंगलियां किसी पथ द्वारा हमारे दिमाग के कई हिस्सों से जुड़ी हुई है। कई योग मुद्राएं इन्हीं उगंलियों के मेल से बनती है जिसकी वजह से हमारे दिमाग में सकारात्मक प्रभाव डालते है। आप इसे एक्यूप्रेशर पद्धति जैसे मान सकते है। लेकिन अभी तक योग मुद्रा के ऊपर उतनी ज्यादा शोध नहीं की गई है जो बता सके की योग मुद्रा किस प्रकार लाभदायक है।

आयुर्वेद के अनुसार हमारी हाथ की पांच उगंलिया पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। अंगूठा आग का, बीच की उंगली आकाश का, अनामिका पृथ्वी का, तर्जनी हवा का और छोटी उंगली जल का प्रतिनिधित्व करती है। योग मुद्रा करते वक्त जब ये उंगलियां मिलती है तो ये पांचों तत्व में संतुलन होता है और हमारा शरीर और मन स्वस्थ रहता है।

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योग मुद्राएँ आरोग्य का साधन समझी जाती है। मुद्रा में ज़्यादातर हाथों का प्रयोग होता है। समस्त विश्व पंचतत्वों से निर्मित है। शरीर की पाँच अंगुलियाँ पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है।

अंगुष्ठ अग्नि, तर्जनी वायु, मध्यमा आकाश, अनामिका पृथ्वी का व कनिष्ठा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । मुद्रा विज्ञान के अनुसार इन्हीं पाँच तत्वों के समन्वय से शरीर की आंतरिक ग्रंथियो, अवयवों व उनकी क्रियाओं को नियमित किया जाता है।

हस्त मुद्राएँ तत्काल ही अपना असर शुरू कर देती है।इनको कभी भी किया जा सकता है किन्तु वज्रासन,पद्मासन, या सुखासन में बैठ कर करने से अधिक लाभ होता है।