चिन और ज्ञान मुद्रा

चिन और ज्ञान मुद्रा -ज्ञान अर्थात बुद्धि-इस मुद्रा के प्रतिदिन अभ्यास से बुद्धि के स्तर पर वृद्धि होती है। ध्यान और प्राणायाम करते समय इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करना चाहिए । अंगूठे एवं तर्जनी अंगुली के स्पर्श से जो मुद्रा बनती है उसे ज्ञान मुद्रा कहते हैं | तर्जनी अर्थात प्रथम उँगली को अँगूठे के नुकीले भाग से स्पर्श करायें। शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रहें।हाथ की तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली) अंगुली के अग्रभाग (सिरे) को अंगूठे के अग्रभाग के साथ मिलाकर रखने और हल्का-सा दबाव देने से ज्ञान मुद्रा बनती है| बाकी उंगलियां सहज रूप से सीधी रखें| इस मुद्रा का सम्पूर्ण स्नायुमण्डल और मस्तिष्क पर बड़ा ही हितकारी प्रभाव पड़ता है|


ज्ञान मुद्रा किसी भी आसन या स्थिति में की जा सकती है| ध्यान के समय इसे पद्मासन में करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है| इसे अधिक से-अधिक समय तक किया जा सकता है| इस मुद्रा के लिए समय की कोई सीमा नहीं है| हस्तरेखा विज्ञान की दृष्टि से, इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से जीवन रेखा और बुध रेखा के दोष दूर होते हैं तथा अविकसित शुक्र पर्वत का विकास होता है| ज्ञान मुद्रा समस्त स्नायुमंडल को सशक्त बनाती है| विशेषकर, मानसिक तनाव के कारण होनेवाले दुप्रभावों को दूर करके मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को सबल करती है| ज्ञान मुद्र के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क की सभी विकृतियां और रोग दूर हो जाते हैं| अनिद्रा रोग में यह मुद्रा अत्यंत कारगर सिद्ध होती है| मस्तिष्क शुद्ध और विकसित होता है| मन शांत हो जाता है| चेहरे पर अपूर्व प्रसन्नता झलकने लगती है| ज्ञान मुद्रा मानसिक एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होती है| तर्जनी अंगुली और अंगूठा जहां एक एक दूसरे को स्पर्श करते हैं, हल्का-सा नाड़ी स्पन्दन महसूस होता है| वहां ध्यान लगाने से चित्त का भटकना बंद होकर मन एकाग्र हो जाता है| ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है| इसके अभ्यास से स्मरण शक्ति उन्नत और बुद्धि तेज होती है| साधना के क्षेत्र में साधक द्वारा लगातार ज्ञान मुद्रा करने से उसका ज्ञान-नेत्र (शिव-नेत्र) खुल सकता है| अन्तःदृष्टि प्राप्त होकर छठी इंद्रिय का विकास हो सकता है| दिव्य-चक्षु के खुलने से साधक त्रिकाल की घटनाओं को यथावत् देख सकने तथा दूसरे के मन की बातें जान सकने की क्षमता प्राप्त कर लेता है|
लाभः मानसिक रोग जैसे कि अनिद्रा अथवा अति निद्रा, कमजोर यादशक्ति, क्रोधी स्वभाव आदि हो तो यह मुद्रा अत्यंत लाभदायक सिद्ध होगी। यह मुद्रा करने से पूजा पाठ, ध्यान-भजन में मन लगता है।

इस मुद्रा का प्रतिदिन 30 मिनठ तक अभ्यास करना चाहिए।

ज्ञान मुद्रा करने की विधि-

  • सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
  • अब तर्जनी उंगली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से स्पर्श कीजिए।
  • हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
  • अन्य तीन उंगलियों को सीधा रखिए।
  • आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
  • अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

 

ज्ञान मुद्रा करने की सावधानियां :

  1. ज्ञान मुद्रा से सम्पूर्ण लाभ पाने के लिए साधक को चाहिए कि वह सादा प्राकृतिक भोजन करे |
  2. मांस मछली, अंडा,शराब,धुम्रपान,तम्बाकू,चाय,काफ़ी कोल्ड ड्रिंक आदि का सेवन न करें |
  3. उर्जा का अपव्यय जैसे- अनर्गल वार्तालाप,बात करते हुए या सामान्य स्थिति में भी अपने पैरों या अन्य अंगों को हिलाना, ईर्ष्या, अहंकार आदि उर्जा के अपव्यय का कारण होते हैं, इनसे बचें |

ज्ञान मुद्रा करने की करने का समय व अवधि :

  1. प्रतिदिन प्रातः, दोपहर एवं सांयकाल इस मुद्रा को किया जा सकता है |
  2. प्रतिदिन 48 मिनट या अपनी सुविधानुसार इससे अधिक समय तक ज्ञान मुद्रा को किया जा सकता है | यदि एक बार में 48 मिनट करना संभव न हो तो तीनों समय 16-16 मिनट तक कर सकते हैं |
  3. पूर्ण लाभ के लिए प्रतिदिन कम से कम 48 मिनट ज्ञान मुद्रा को करना चाहिए |

ज्ञान मुद्रा करने की लाभ-

  1. मन के विचारों की उथल पुथल कम करती है।
  2. मन को शांत करती है।
  3. एकाग्रता व स्मरण शक्ति बड़ाती है।
  4. सिरदर्द,उच्च रक्तचाप ,माइग्रेन,अनिंद्रा व अशांत मन में लाभ देती है।

ज्ञान मुद्रा की चिकित्सकीय लाभ :

  1. ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभकारी मुद्रा है, इसके अभ्यास से बुद्धि का विकास होता है,स्मृति शक्ति व एकाग्रता बढती है एवं पढ़ाई में मन लगने लगता है |
  2. ज्ञान मुद्रा के अभ्यास से अनिद्रा,सिरदर्द, क्रोध, चिड़चिड़ापन, तनाव,बेसब्री, एवं चिंता नष्ट हो जाती है |
  3. ज्ञान मुद्रा करने से हिस्टीरिया रोग समाप्त हो जाता है |
  4. नियमित रूप से ज्ञान मुद्रा करने से मानसिक विकारों एवं नशा करने की लत से छुटकारा मिल जाता है |
  5. इस मुद्रा के अभ्यास से आमाशयिक शक्ति बढ़ती है जिससे पाचन सम्बन्धी रोगों में लाभ मिलता है |
  6. ज्ञान मुद्रा के अभ्यास से स्नायु मंडल मजबूत होता है |

ज्ञान मुद्रा की आध्यात्मिक लाभ :

  1. ज्ञान मुद्रा में ध्यान का अभ्यास करने से एकाग्रता बढ़ती है जिससे ध्यान परिपक्व होकर व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति करता है |
  2. ज्ञान मुद्रा के अभ्यास से साधक में दया,निडरता,मैत्री,शान्ति जैसे भाव जाग्रत होते हैं |
  3. इस मुद्रा को करने से संकल्प शक्ति में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है |

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Pooja Tue, 30/Mar/2021 - 12:27

तर्जनी अर्थात प्रथम उँगली को अँगूठे के नुकीले भाग से स्पर्श करायें। शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रहें।हाथ की तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली) अंगुली के अग्रभाग (सिरे) को अंगूठे के अग्रभाग के साथ मिलाकर रखने और हल्का-सा दबाव देने से ज्ञान मुद्रा बनती है| बाकी उंगलियां सहज रूप से सीधी रखें| इस मुद्रा का सम्पूर्ण स्नायुमण्डल और मस्तिष्क पर बड़ा ही हितकारी प्रभाव पड़ता है|
ज्ञान मुद्रा किसी भी आसन या स्थिति में की जा सकती है| ध्यान के समय इसे पद्मासन में करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है| इसे अधिक से-अधिक समय तक किया जा सकता है| इस मुद्रा के लिए समय की कोई सीमा नहीं है| हस्तरेखा विज्ञान की दृष्टि से, इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से जीवन रेखा और बुध रेखा के दोष दूर होते हैं तथा अविकसित शुक्र पर्वत का विकास होता है|
ज्ञान मुद्रा समस्त स्नायुमंडल को सशक्त बनाती है| विशेषकर, मानसिक तनाव के कारण होनेवाले दुप्रभावों को दूर करके मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को सबल करती है| ज्ञान मुद्र के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क की सभी विकृतियां और रोग दूर हो जाते हैं| अनिद्रा रोग में यह मुद्रा अत्यंत कारगर सिद्ध होती है| मस्तिष्क शुद्ध और विकसित होता है| मन शांत हो जाता है| चेहरे पर अपूर्व प्रसन्नता झलकने लगती है| ज्ञान मुद्रा मानसिक एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होती है| तर्जनी अंगुली और अंगूठा जहां एक एक दूसरे को स्पर्श करते हैं, हल्का-सा नाड़ी स्पन्दन महसूस होता है| वहां ध्यान लगाने से चित्त का भटकना बंद होकर मन एकाग्र हो जाता है| ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है| इसके अभ्यास से स्मरण शक्ति उन्नत और बुद्धि तेज होती है| साधना के क्षेत्र में साधक द्वारा लगातार ज्ञान मुद्रा करने से उसका ज्ञान-नेत्र (शिव-नेत्र) खुल सकता है| अन्तःदृष्टि प्राप्त होकर छठी इंद्रिय का विकास हो सकता है| दिव्य-चक्षु के खुलने से साधक त्रिकाल की घटनाओं को यथावत् देख सकने तथा दूसरे के मन की बातें जान सकने की क्षमता प्राप्त कर लेता है|
लाभः मानसिक रोग जैसे कि अनिद्रा अथवा अति निद्रा, कमजोर यादशक्ति, क्रोधी स्वभाव आदि हो तो यह मुद्रा अत्यंत लाभदायक सिद्ध होगी। यह मुद्रा करने से पूजा पाठ, ध्यान-भजन में मन लगता है।

इस मुद्रा का प्रतिदिन 30 मिनठ तक अभ्यास करना चाहिए।