अपान मुद्रा

विधि-
सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब मध्यमा और अनामिका उंगली को आपस में मिलाकर अंगूठे के अग्र भाग से स्पर्श कीजिए ।अन्य दो  उंगलियों को सीधा रखिए।
हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

अपान मुद्रा करने के लाभ

  1. मूत्र संबंधी रोगो में लाभप्रद
  2. गुर्दों के लिए लाभकारी
  3. अनिद्रा रोग दूर होता है।
  4. पेट संबंधित रोगो जैसे वायु विकार ,कब्ज,पाचन क्रिया आदि में लाभप्रद।
  5. हृदय शक्तिशाली बनता है।
  6. बवासीर के लिए उपयोगी है। 

अपान मुद्रा करने की विधि :

  1. सुखासन या अन्य किसी आसान में बैठ जाएँ, दोनों हाथ घुटनों पर, हथेलिया उपर की तरफ एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रखें |
  2. मध्यमा (बीच की अंगुली)एवं अनामिका (RING FINGER) अंगुली के उपरी पोर को अंगूठे के उपरी पोर से स्पर्श कराके हल्का सा दबाएं | तर्जनी अंगुली एवं कनिष्ठा (सबसे छोटी) अंगुली सीधी रहे |

अपान मुद्रा करने की सावधानियाँ :

  • अपान मुद्रा के अभ्यास काल में मूत्र अधिक मात्रा में आता है, क्योंकि इस मुद्रा के प्रभाव से शरीर के अधिकाधिक मात्रा में विष बाहर निकालने के प्रयास स्वरुप मूत्र ज्यादा आता है,इससे घबड़ाए नहीं |
  • अपान मुद्रा को दोनों हाथों से करना अधिक लाभदायक है,अतः यथासंभव इस मुद्रा को दोनों हाथों से करना चाहिए ।

अपान मुद्रा करने का समय व अवधि :

  • अपान मुद्रा को प्रातः,दोपहर,सायं 16-16 मिनट करना सर्वोत्तम है |

अपान मुद्रा करने की चिकित्सकीय लाभ :

  1. अपान मुद्रा के नियमित अभ्यास से कब्ज,गैस,गुर्दे तथा आंतों से सम्बंधित समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं |
  2. अपान मुद्रा बबासीर रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है | इसके प्रयोग से बबासीर समूल नष्ट हो जाती है |
  3. यह मुद्रा मधुमेह के लिए लाभकारी है, इसके निरंतर प्रयोग से रक्त में शर्करा का स्तर सन्तुलित होता है |
  4. अपान मुद्रा शरीर के मल निष्कासक अंगों – त्वचा,गुर्दे एवं आंतों को सक्रिय करती है जिससे शरीर का बहुत सारा विष पसीना,मूत्र व मल के रूप में बाहर निकल जाता है फलस्वरूप शरीर शुद्ध एवं निरोग हो जाता है |
     

अपान मुद्रा करने की आध्यात्मिक लाभ :

  1. अपान मुद्रा से प्राण एवं अपान वायु सन्तुलित होती है | इस मुद्रा में इन दोनों वायु के संयोग के फलस्वरूप साधक का मन एकाग्र होता है एवं वह समाधि को प्राप्त हो जाता है |
  2. अपान मुद्रा के अभ्यास से स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र जाग्रत होते है