अपन वायु मुद्रा

प्राण स्थान मुख्य रूप से हृदय में आंनद केंद्र (अनाहत चक्र) में है। प्राण नाभि से लेकर कठं-पर्यन्त फैला हुआ है। प्राण का कार्य श्वास-प्रश्वास करना, खाया हुआ भोजन पकाना, भोजन के रस को अलग-अलग इकाइयों में विभक्त करना, भोजन से रस बनाना, रस से अन्य धातुओं का निर्माण करना है। अपान का स्थान स्वास्थय केन्द्र और शक्ति केन्द्र है, योग में जिन्हें स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधर चक्र कहा जाता है। अपान का कार्य मल, मूत्र, वीर्य, रज और गर्भ को बाहर निकालना है। सोना, बैठना, उठना, चलना आदि गतिमय स्थितियों में सहयोग करना है। जैसे अर्जन जीवन के लिए जरूरी है, वैसे ही विर्सजन भी जीवन के लिए अनिर्वाय है। शरीर में केवल अर्जन की ही प्रणाली हो, विर्सजन के लिए कोई अवकाश न हो तो व्यक्ति का एक दिन भी जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है। विर्सजन के माध्यम से शरीर अपना शोधन करता है। शरीर विर्सजन की क्रिया यदि एक, दो या तीन दिन बन्द रखे तो पूरा शरीर मलागार हो जाए। ऐसी स्थिति में मनुष्य का स्वस्थ्य रहना मुश्किल हो जाता है। अपान मुद्रा अशुचि और गन्दगी का शोधन करती है।
 

अपान मुद्रा करने की विधि-

  1. सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
  2. अब तर्जनी उंगली को अंगूठे की जड़ में लगाएँगे और मध्यमा और अनामिका के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से स्पर्श करेंगे व छोटी उंगली (कनिष्ठका) को सीधा रखेंगे।
  3. हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
  4. आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
  5. अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।

अपान वायु मुद्रा (ह्रदय मुद्रा) विधि :

  1. सुखासन या अन्य किसी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ | दोनों हाथ घुटनों पर रखें, हथेलियाँ उपर की तरफ रहें एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रहे |
  2. हाथ की तर्जनी (प्रथम) अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा दें तथा मध्यमा (बीच वाली अंगुली) व अनामिका (तीसरी अंगुली) अंगुली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श कर हल्का दबाएँ |
  3. कनिष्ठिका (सबसे छोटी अंगुली) अंगुली सीधी रहे ।

अपान मुद्रा करने की सावधानी :

  • अपान वायु मुद्रा एक शक्तिशाली मुद्रा है इसमें एक साथ तीन तत्वों का मिलन अग्नि तत्व से होता है,इसलिए इसे निश्चित समय से अधिक नही करना चाहिए |

अपान मुद्रा करने का समय व अवधि :

  • अपान वायु मुद्रा करने का सर्वोत्तम समय प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल है |
  • इस मुद्रा को दिन में कुल 48 मिनट तक कर सकते हैं |
  • दिन में तीन बार 16-16 मिनट भी कर सकते हैं |

अपान मुद्रा करने के लाभ :

  1. पेट के रोगों में लाभप्रद
  2. हृदय रोगी में लाभकारी
  3. रक्तचाप को नियंत्रित करती है
  4. मानसिक शांति व आनंद देती है
  5. ऊर्जा का संचार अधिक करती है
  6. वायु विकार में लाभप्रद

अपान मुद्रा करने के चिकित्सकीय लाभ :

  1. अपान वायु मुद्रा ह्रदय रोग के लिए रामवाण है इसी लिए इसे ह्रदय मुद्रा भी कहा जाता है.
  2. दिल का दौरा पड़ने पर यदि रोगी यह मुद्रा करने की स्थिति में हो तो तुरंत अपान वायु मुद्रा कर लेनी चाहिए | इससे तुरंत लाभ होता है एवं हार्ट अटैक का खतरा टल जाता है |
  3. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से रक्तचाप एवं अन्य ह्रदय सम्बन्धी रोग नष्ट हो जाते हैं |
  4. अपान वायु मुद्रा करने से आधे सिर का दर्द तत्काल रूप से कम हो जाता है एवं इसके नियमित अभ्यास से यह रोग समूल नष्ट हो जाता है |
  5. यह मुद्रा उदर विकार को समाप्त करती है अपच,गैस,एसिडिटी,कब्ज जैसे रोगों में अत्यंत लाभकारी है |
  6. अपान वायु मुद्रा करने से गठिया एवं आर्थराइटिस रोग में लाभ होता है |

अपान मुद्रा करने के आध्यात्मिक लाभ :

  1. अपान वायु मुद्रा अग्नि,वायु,आकाश एवं पृथ्वी तत्व के मिलन से बनती है |
  2. इस मुद्रा के प्रभाव से साधक में सहनशीलता,स्थिरता,व्यापकता और तेज का संचार होता है |