योगिक क्रिया शरीर की आंतरिक शुद्धि की विशेष तकनीक है जिसका वर्णन हठयोग के ग्रंथों में पाया जाता है योगी को योगी ने अपने अनुभव और अभ्यास द्वारा इंहें भी विकसित किया है जिस प्रकार हम सामान्य मनुष्य अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दांतो की सफाई वालों की सफाई स्नान धुले वस्त्र पहनना आदि दैनिक नित्य कर्म करते हैं उसी प्रकार एक योगी योग साधना में लीन होने से पूर्व शरीर की आंतरिक शुद्धि के लिए श्रेष्ठ कर्मों का सहारा लेता है एवं का योग साधना में योग का अभ्यास करता है उन्हें कहते हैं कपालभाति योग द्वारा शरीर में तत्वों को बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है अनावश्यक मानवाधिकार शरीर में जमा हो गया तो लोगों को जन्म देते हैं उन अंगों की कार्य क्षमता को काफी कम कर देते हैं विभिन्न रोगों की चिकित्सा करने योग्य कर्म का विशेष महत्व है योग चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत ही शर्मा द्वारा की जाती है यहां हम शरीर में संज्ञा संस्थान की स्थिति के अनुसार ऊपर या नीचे की तरफ बढ़ते हुए शब्द कर्मो का वर्णण करेंगे सर्वप्रथम मस्तिष्क के लिए कपालभाति उस के नेत्रों के लिए तड़पना चित्रों के लिए नैतिक आशा शुद्धि के लिए 23 उद्देश्यों के लिए न्याय एवं अंत में संपूर्ण अध्ययन के लिए शंख प्रक्षालन का अभ्यास करना उचित रहता है 

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