चित्तवृत्तियों का निरोध ही योग है।
(मृत्यु) दु:ख से छूटने और (अमृत) आनन्द प्राप्त करने का साधन (योग) ईश्वर उपासना करना है।

योग शब्दों के बारे में भाष्यकारों के अपने-अपने मत हैं। कुछ भाष्यकारों ने योग शब्द को ‘वियोग’, ‘उद्योग’ और ‘संयोग’ के अर्थों में लिया है, तो कुछ लोगों का कहना है कि योग आत्मा और प्रकृति के वियोग का नाम है। कुछ कहते हैं कि यह एक विशेष उद्योग अथवा यत्न का नाम है, 

जिसकी सहायता से आत्मा स्वयं को उन्नति के शिखर पर ले जाती है। इसी संबंध में कुछ लोगों का विचार है कि योग ईश्वर और प्राणी के संयोग का नाम है। सच तो यह है कि योग में ये तीनों अंग सम्मलित हैं। अन्तिम उद्देश्य संयोग है, जिसके लिए उद्योग की आवश्यकता होती है और इसी उद्योग का स्वरूप ही यह है कि प्रकृति से वियोग किया जाए।

योग के अंग- यो के आठ अंग होते हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
यम पांच होते हैं, जिनको हम समाज से संबंधित होने के कारण ‘सामाजिक धर्म’ कहेंगे।

नियम भी पांच हैं। चूंकि यह व्यक्ति से संबंध रखते है, अत: इन्हें हम ‘वैयक्तिक धर्म’ कहेंगे। यम और नियम योग में प्रवेश करने वालों के लिए ऐसे आवश्यक अंग हैं, जैसे किसी मकान के लिए उसकी नींव होती है।
वास्तव में योगाभ्यास का आरम्भ ‘आसन’ से होता है, जो योग का तीसरा अंग हैं। आसन का अन्नमय-कोश से संबंध है। आसन करने से अन्नमय-कोश सुन्दर और स्वस्थ बनता है। शरीर निरोगी और तेजस्वी बनता है।

प्राणायाम का प्राणमय-कोश से संबंध है। प्राणायाम करने से प्राणमय कोश की वृद्धि होती है और प्राण शुद्धि होती है।
प्रत्याहार और धारणा का मनोमय कोश (कर्मेन्द्रियों) से संबंध होता है। इससे इन्द्रियों का निग्रह होता है। मन निर्विकारी और स्वच्छ बनता है और उसका विकास होता है।

धारणा का विज्ञानमय कोश (ज्ञानेन्द्रियों) से संबंध है। इससे बुद्धि का शुद्धिकरण और विकास होता है।
समाधि का आनन्दमय कोश (प्रसन्नता, प्रेम, अधिक तथा कम आनन्द) से संबंध है। इससे आनन्द की प्राप्ति होती है।
योगासनों के गुण और लाभ

(1)    योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।

(2)    योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।

(3)    आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।

(4)    योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है।

(5)    योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं।

(6)    योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।

(7)    योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।

(8)    योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।

(9)    योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।

(10)    योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।

(11)    योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।

(12)    योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है, और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।
(13)    आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।
(14)    आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
(15)    योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।

योगासनों के गुण और लाभ

(1)    योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।

(2)    योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।

(3)    आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोडऩे और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।

(4)    योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है।

(5)    योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बडिय़ां उत्पन्न नहीं होतीं।

(6)    योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।

(7)    योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।

(8)    योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।

(9)    योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।

(10)    योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, मन और शरीर को स्थाई तथा संपूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।

(11)    योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।

(12)    योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है, और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।

(13)    आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।

(14)    आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

(15)    योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच अंगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णतया स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।

 

योगाभ्यास के लिए आवश्यक बातें :

आत्मा से साक्षात्कार के लिए योग एक वैज्ञानिक कला है। योग द्वारा मानसिक शक्तियों का विकास होता है और देह में निहित आत्मा-तत्त्व साथ ही प्रकाशित होता है। प्रत्येक जीवन का क्रियात्मक ज्ञान उससे संबंधित प्रयोगशाला से प्राप्त होता है, जहां उसके अनुकूल सब द्रव्य और उपकरण उपस्थित होते हैं तथा उन द्रव्यों के संश्लेषण-विश्वलेषण से भी हम परिचित होते हैं।

हमारा शरीर ही योग की प्रयोगशाला है। शरीर में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ये साधन यन्त्ररूप हैं, अभ्यास और वैराग्य, एकाग्रता यन्त्रों के प्रयोग में मुख्य सहायक हैं। योग विज्ञान की प्राप्ति के लिए इसलिए आवश्यक है कि निज देह की प्रयोगशाला को सुव्यवस्थित रखा जाए और यंत्रों का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जाए।

योगाचरण का अधिकार बिना किसी भेद-भाव के हर नर-नारी मात्र को है। योग, मात्र साधु-संन्यासियों और वैरागियों के लिए हैं, यह धारणा गलत है। हां, जिस व्यक्ति के हृदय में पिपासा, अभीप्सा, श्रद्धा और विश्वास है, वही इसका अधिकारी है, फिर वह चाहे कोई भी हो।

योग प्रक्रिया एक साधन है, जिससे पूर्ण लाभान्वित होने के लिए इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए यह विश्वास करना चाहिए कि जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए योगाभ्यास किया जा रहा है, उसमें निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। योग पद्धति अपने आप में पूर्ण एवं समर्थ हैं। योग अभ्यास द्वारा रोग निवारण वाली इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक का पूर्ण लाभ उठाने के लिए योगाभ्यास से संबद्ध निम्नलिखित नियमों एवं अपेक्षाओं को भी ध्यान में रखना एवं समझना आवश्यक है।  

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