योग एक सम्पूर्ण प्रक्रिया व प्रणाली है जबकि मेडिटेशन या ध्यान महज एक भाग है अष्टांगिक योग प्रणाली का।

योग का अर्थ है - “मिलन”। जीव की समष्टिगत चेतना का व्यष्टिगत चेतना से एकाकार होना ही योग है।

पातंजल योगसूत्र के अनुसार - “योगश्चित्तवृत्ति निरोधः” —

अर्थात, चित्त की समस्त वृत्तियों यथा - प्रमाण-विपर्यय-विकल्प-निद्रा और स्मृति रूप समस्त वृत्तियों का पूरी तरह से निरुद्ध हो जाना ही योग है।

योग समाधि को भी कहते हैं क्योंकि यह ‘योग’ शब्द “युज् समाधौ” से निष्पन्न होता है, ना कि “युजिर् योगे” संयोग अर्थ वाली युजिर धातु से।

चित्त की “क्षिप्त-मूढ़-विक्षिप्त-निरुद्ध-एकाग्र” रूपी पाँचों भूमियों में होने वाला यह योग चित्त का ही धर्म है। चित्त की एकाग्र भूमि पर जो समाधि का लाभ होता है उसे “संप्रज्ञात योग” कहते हैं। यह वितर्कानुगत-विचारानुगत-आनन्दानुगत और अस्मितानुगत रूप से चार प्रकार का है।

जब चित्त की समस्त प्रकार की वृत्तियों का सम्पूर्णतया निरोध हो जाता है तब सम्यक निरोध रूप “असम्प्रज्ञात समाधि” ही मुख्य रूप से योग है, तथापि संप्रज्ञात समाधि को भी योग कहते हैं। वैसे इस समाधि में तमस और रजस वृत्तियों का पूर्णतया निरोध होने पर भी सात्त्विक वृत्ति की स्थिति बनी ही रहती है।

अष्टांगिक योग के आठ अंग हैं -

  1. यम — अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य
  2. नियम — शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान
  3. आसन —- सिद्धासन, पद्मासन, वीरासन, सुखासन इत्यादि
  4. प्राणायाम —- रेचक, पूरक, कुम्भक
  5. प्रत्याहार —- ईन्द्रियों का उनके विषयों से संबंध टूट जाने पर इंद्रियों का चित्त के स्वरूप को अनुकरण कर लेना ही प्रत्याहार कहलाता है।
  6. धारणा —- “देेशबंधचित्तस्य धारणा।।” —- चित्त को किसी एक स्थान पर एकाग्र करना ही धारणा है।
  7. ध्यान (मेडिटेशन) — “तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानं।।” —- निरुद्ध चित्तवृत्ति का अजस्र, अखंड प्रवाह या चित्त की प्रशांतवाहिता ही ध्यान है।
  8. समाधि —- संप्रज्ञात समाधि, असम्प्रज्ञात समाधि।

आशा करता हूँ कि अब आपको योग और ध्यान (मेडिटेशन) में अंतर स्पष्ट हो गया होगा।

ध्यान (मेडिटेशन) एक साधन है, जबकि ‘योग’ साध्य है।

ध्यान (मैडिटेशन) एक प्रक्रिया है, जबकि ‘योग’ अंतिम परिणाम है।

धन्यवाद!


‘मैडिटेशन’ योग का एक चरण है। योग कई प्रकार के होते हैं जैसे राजयोग, हठयोग, तंत्रयोग, मंत्रयोग, जपयोग,लययोग इत्यादि। महर्षि पातंजलि ने योग को दो भागों में बांटा, जिसे राजयोग और हठयोग कहा जाता है। राजयोग में यम और नियम को शामिल किया गया। यम यानि की सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और नियम में तप, शौच, संतोष, ईश्वर प्राणिधाम को शामिल किया गया। यम, नियम के बाद आसन, प्राणायाम, प्रत्यधन,धारणा, ध्यान एवं समाधी का स्थान है।आज योग को आसन के द्वारा ही इंगित किया जाता है और ध्यान (मेडिटेशन) इसका सातवाँ या समाधी के पहले का भाग है।

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