इसमें पूरक दायीं नासिका से करते हैं। दायीं नासिका सूर्य नाड़ी से जुड़ी मानी गई है। इसे ही सूर्य स्वर कहते हैं। इस कारण इसका नाम सूर्य भेदन प्राणायाम है।
 

सूर्य भेदन​ प्राणायाम का लाभ :

  1. सूर्यभेदन प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर के अंदर गर्मी उत्पन्न होती है।
  2. सर्दियों के दिनों में इस प्राणायाम का अभ्यास किया जाए जो कफ संबंधी रोगों में यह लाभदायक है।
  3. नजला, खांसी, दमा, साइनस, लंग्स, हृदय और पाइल्स के लिए भी यह प्राणायाम लाभदायक है।
  4. इसके अभ्यास से मन शांत होता है तथा मस्तिष्क से तंद्रा दूर होती है।
  5. यह सकारात्मक विचारों का संचार करने में सहयोगी है।
  6. खासकर इससे सेक्स ऊर्जा को सही आयाम मिलता है।

सूर्य भेदन​ प्राणायाम करने की विधि :

  • किसी भी सुखासन में बैठकर मेरुदंड सीधा रखते हुए दाएं से प्रणव मुद्रा बनाते हैं और अंगुली को रखते हैं दायीं नासिका पर, फिर बायीं नासिका बंद कर दायीं नासिका से पेट और सीना फुलाते हुई पूरक क्रिया करते हैं। यथाशक्ति कुम्भक करने के बाद बंद हटाकर बायीं नासिका से रेचक करते हैं।
  • इसमें प्रारम्भ में पूरक, रेचक और कुम्भक एक, चार और दो रशों में करते हैं। बाद में धीरे-धीरे बढ़ाकर पूरक-15, कुम्भक-60 और रेचक-30 रशों में करें। रशों अर्थात जितनी भी देर भी आप पूरक करते हैं उससे दो रेचक और चार गुना कुम्भक करें। जैसे यदि आप 15 सेकंड पूरक करते हैं तो 60 सेकंड कुम्भक करें और फिर 30 सेकंड रेचकर करें।
     

सूर्य भेदन​ प्राणायाम करने की सावधा‍नी :

  1. पूरक करते समय पेट और सीने को ज्यादा न फुलाएं।
  2. श्वास पर नियंत्रण रखकर ही पूरक क्रिया करें।
  3. पूरक-रेचक करते समय श्वास-प्रश्वास की आवाज नहीं आनी चाहिए।
  4. प्राणायाम बंद कमरे में न करें और न ही पंखे में।
  5. प्राणायाम के अभ्यास के लिए साफ-सुथरे वातावरण की जगह होना चाहिए।