মূলবন্ধাসন

যোগশাস্ত্রে বর্ণিত একটি আসন বিশেষ। এই আসনের অনুশীলনে শরীরের মূল গ্রন্থি ও স্নায়ুকে সুস্থ ও সক্রিয় করে বলে, এর নামকরণ করা হয়েছে মূলবন্ধাসন (মূলবন্ধ +আসন)।

পদ্ধতি

১. দণ্ডাসনে উপবেশন করুন।
২. এবার দুই পায়ের হাঁটু ভাজ করে, দুই পায়ের পদতল এক করুন এবার দুই পায়ের গোড়ালি উপরে তুলে ধরুন এবং পায়ের অগ্রভাগ মাটিতে স্থাপন করুন।
৩. এবার হাত দুটো উরুর দুই পাশে স্থাপন করুন এক্ষেত্রে হাতের আঙুলগুলো পিছনের দিকে প্রসারিত করুন।
৪. শ্বাস-প্রশ্বাস স্বাভাবিক রেখে ২০ সেকেণ্ড স্থির হয়ে থাকুন।
৫. এরপর ২০ সেকেণ্ড শবাসনে বিশ্রাম নিন।
৬. এরপর আসনটি আরও দুইবার করুন

উপকারিতা

১. শরীরের প্রয়োজনীয় গ্রন্থগুলো থেকে রস নিঃসরণ বৃদ্ধি পায়।
২. পায়ের গোড়ালি, আঙুল, হাঁটু, কোমরের বাত নিরাময় হয়
৩. কোষ্ঠকাঠিন্য, অজীর্ণ রোগের উপশম হয়।
৪. স্ত্রীরোগ, অর্শ নিরাময় হয়।
৫. যৌন সংযম বৃদ্ধি পায়।


मूलबंध का जब आप नियमित रूप से अभ्यास करते हो तब अपान वायु पूर्णरुपेण नियंत्रित हो जाती है आज हम आपको मुलबंध क्या है, विधि और फायदे के बारे में जानकारी देंगें गुदाद्वार को सर्वथा बंद करने की क्रिया को  मूलबंध के नाम से जाना जाता है।

इसको करने से उदर रोग से भी मुक्ति मिलती है जब आप मूलबंध अभ्यास करते हो तब आपको वीर्य रोग का सामना नहीं करना पड़ता। जब आप मुलबंध का नियमित अभ्यास करते हो तब आपकी आयु अधिक हो जाती है। यह सभी बंधो में मूलबंध सर्वोच्च और हमारे शरीर  के लिए अत्यंत उपयोगी होता है। आइये जानते हैं मुलबंध करने की विधि और फायदे के बारे में जाने -

मूल बंध प्राणायाम को करने की विधि इस प्रकार

  1. मूलबंध को किस प्रकार से किया जाता है आइये जानते हैं
  2. मुलबंध को करने के लिए सबसे पहले किसी समतल जगह पर दरी या कंबल को बिछा लें ।
  3. इसके पश्चात अपने बाएँ पैर की एड़ी से गुदाद्वार को दबाकर रखें ।
  4. फिर दाएं पैर को बाएँ पैर की जांघ पर रखकर सिद्दासन में बैठ जाएं।
  5. अपने गुदा को संकुचित करते हुए नीचे की वायु को ऊपर की और खींचने का अभ्यास करें। सिद्दासन में एड़ी के द्वारा ही आप इसको कर सकते हैं।
  6. जब भी आप सिद्दासन में बैठते हो तो आप के दोनों घुटने जमीन को छुते हुए होने चाहिए और आप की हथेलियाँ उन घुटनों के ऊपर टिकी हुई होनी चाहिए।
  7. अब गहरी सांस लेकर वायु को अंदर ही रोक लें।
  8. अब गुदाद्वार को अच्छी तरह से सिकोड़ लें।
  9. अपनी सांस को रोककर रखने के साथ आरामदायक समयावधि तक बंध को बनाएं।
  10. इस अवस्था में जालन्धर बंध भी लगाकर रखें और फिर मूलाधार का संकुचन छोड़कर जालन्धर बंध को धीरे धीरे करके खोल दे और धीरे से अपनी सांस को बाहर छोड़ दे।
  11. इस अभ्यास को चार से पांच बार तक करें।
  12. जब भी आप इस योग का अभ्यास करें तब योग एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें।

मूल बंध प्राणायाम के फायदे यह 

मूलबंध करने से हमारे शरीर को बहुत से फायदे मिलते हैं जो इस प्रकार से हैं –

कब्ज दूर करें

यदि आपको कब्ज की समस्या है तब आपको मूलबंध को नियमित रूप से करना चाहिए। इससे कब्ज को समस्या समाप्त हो जाती है।

सुस्ती को दूर करें

यदि आपको सुस्ती का एहसास हो रहा है तब आपको मुलबंध का अभ्यास करना चाहिए। इसको करने से आपकी सुस्ती नष्ट हो जाती है।

भूख बढायें

मुलबंध को करने से भूख बढती है इसलिए जिन लोगों को भूख नहीं लगती। उन्हें इस आसन को जरुर करना चाहिए।

बीमारियों से बचाएं

इसको नियमित रूप से करने से हमारा शरीर स्वास्थ्य रहता है जिससे आप कई तरह की बीमारियों से बच सकते हैं।

हर्नियो की परेशानी को दूर करें

यह क्रिया उनके लिए बहुत ही फायदेमंद होती है जिन लोगो को हर्निया या पाइल्स की शिकायत होती है। इससे उनकी हर्नियों की परेशानी दूर हो जाती है।

थकान को दूर करें

जब भी हमें थकान महसूस होती है तब हमें मूलबंध किर्या को करना चाहिए। क्योंकि इसको करने से हमारी सारी थकान दूर हो जाती है।

मूल बंध प्राणायाम सावधानियां रखें

यौन और उदर रोग होने की स्तिथि में इस क्रिया का अभ्यास किसी योगाचार्य के निर्देशक में ही करना चाहिए।

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Comments

Anand Thu, 02/Dec/2021 - 21:45

मूलबन्ध --- मूल गुदा एवं लिङु -स्थान के रन्ध्र को बन्द करने का नाम मूलबन्ध है । वाम पाद की एडी को गुदा और लिङु के मध्यभाग में दृढ लगाकर गुदा को सिकोडकर योनिस्थान अर्थात् ‍ गुदा और लिङु एवं कन्द के बीच के भाग को दृढतापूर्वक संकोचन द्वारा अधोगत अपानवायु को बल के साथ धीरे -धीरे ऊपर की ओर है । अन्य आसनों के साथ एडी को सीवनी पर बिना लगाये हुए भी मूलबन्ध लगाया जा सकता है ।

फल --- इससे अपानवायु का ऊर्ध्व -गमन होकर प्राण के साथ एकता होती है । कुण्डलिनी -शक्ति सीधी होकर ऊपर की ओर चढती की ओर चढती है । कोष्ठबद्धता दूर करने , जठराग्नि को प्रदीप्त करने और वीर्य को ॠर्ध्वरेतस् ‍ बनामे में बन्ध अति उत्तम है । साधकों को न केवल भजन के अवसर पर किन्तु हर समय मूल बन्ध को लगाये रखने का अभ्यास करना चाहिये ।