किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाओ। हवा बह रही है और वृक्ष के पत्तों में सरसराहट की आवाज हो रही है। हवा तुम्हें छूती है, तुम्हारे चारों तरफ डोलती है और गुजर जाती है। लेकिन तुम उसे ऐसे ही मत गुजर जाने दो; उसे अपने भीतर प्रवेश करने दो और अपने में होकर गुजरने दो। आंखें बंद कर लो और जैसे हवा वृक्ष से होकर गुजरे और पत्तों में सरसराहट हो, तुम भाव करो कि मैं भी वृक्ष के समान खुला हुआ हूं और हवा मुझमें भी होकर बह रही है--मेरे आस-पास से नहीं, ठीक मेरे भीतर से होकर बह रही है। वृक्ष की सरसराहट तुम्हें अपने भीतर अनुभव होगी और तुम्हें लगेगा कि मेरे शरीर के रंध्र-रंध्र से हवा गुजर रही है।

और हवा वस्तुतः तुमसे होकर गुजर रही है। यह कल्पना ही नहीं है, यह तथ्य है। तुम भूल गए हो। तुम नाक से ही श्वास नहीं लेते, तुम पूरे शरीर से श्वास लेते हो, एक-एक रंध्र से श्वास लेते हो, लाखों छिद्रों से श्वास लेते हो। अगर तुम्हारे शरीर के सभी छिद्र बंद कर दिए जाएं, उन पर रंग पोत दिया जाए और तुम्हें सिर्फ नाक से श्वास लेने दिया जाए तो तुम तीन घंटे के अंदर मर जाओगे। सिर्फ नाक से श्वास लेकर तुम जीवित नहीं रह सकते हो। तुम्हारे शरीर का प्रत्येक कोष्ठ जीवंत है और प्रत्येक कोष्ठ श्वास लेता है। हवा सच में तुम्हारे शरीर से होकर गुजरती है, लेकिन उसके साथ तुम्हारा संपर्क नहीं रहा है। तो किसी झाड़ के नीचे बैठो और अनुभव करो।

आरंभ में यह कल्पना मालूम पड़ेगी, लेकिन जल्दी ही कल्पना यथार्थ बन जाएगी। यह यथार्थ ही है कि हवा तुमसे होकर गुजर रही है। और फिर उगते हुए सूरज के नीचे बैठो और अनुभव करो कि सूरज की किरणें न केवल मुझे छू रही हैं, बल्कि मुझमें प्रवेश कर रही हैं और मुझसे होकर गुजर रही हैं। इस तरह तुम खुल जाओगे, ग्रहणशील हो जाओगे।

क्योंकि अहंकार बाधा है। जब तुम्हें लगता है कि मैं हूं तो तुम इतने मौजूद होते हो कि तुममें कुछ भी प्रवेश नहीं कर सकता। तुम अपने से ही इतने भरे होते हो। जब तुम नहीं होते हो तो सब कुछ तुमसे होकर गुजर सकता है। तुम इतने विराट हो गए होते हो कि परमात्मा भी तुमसे होकर गुजर सकता है। अब पूरा अस्तित्व तुमसे होकर गुजरने को तैयार है; क्योंकि तुम तैयार हो। धर्म की सारी कला इसमें है कि कैसे स्वयं को खोया जाए, कैसे विलीन हुआ जाए, कैसे समर्पित हुआ जाए, कैसे शून्य आकाश हुआ जाए।

Meditation