जैसे ही कुछ करने की वृत्ति हो, रुक जाओ।
तुम कहीं भी इसका प्रयोग कर सकते हो। तुम स्नान कर रहे हो; अचानक अपने को कहो: स्टॉप! अगर एक क्षण के लिए भी यह एकाएक रुकना घटित हो जाए तो तुम अपने भीतर कुछ भिन्न बात घटित होते पाओगे। तब तुम अपने केंद्र पर फेंक दिए जाओगे। और तब सब कुछ ठहर जाएगा। तुम्हारा शरीर तो पूरी तरह रुकेगा ही, तुम्हारा मन भी गति करना बंद कर देगा।
जब स्टॉप कहो तो उस समय श्वास भी मत लो। सब कुछ रुक जाना चाहिए--श्वास भी, शरीर की गति भी। एक क्षण के लिए भी इस रुकने में स्थित हो जाओ तो तुम पाओगे कि राकेट की गति से अपने केंद्र में अचानक प्रवेश कर गए हो। इसकी एक झलक भी चमत्कारी है, क्रांतिकारी है। यह झलक तुम्हें बदल देगी। फिर धीरे-धीरे इस केंद्र की और भी झलकें तुम्हें मिलेंगी। इसलिए निष्क्रियता का अभ्यास नहीं करना है। विधि का उपयोग आकस्मिकता में है, अनपेक्षित होने में है।
उदाहरण के लिए, तुम पानी पीने जा रहे हो। तुमने गिलास को हाथ में लिया है--वहीं एकाएक रुक जाओ। हाथ वहीं है, पीने की इच्छा भी वहीं है, प्यास भी वहीं है--लेकिन तुम बिलकुल रुक जाओ। गिलास बाहर है, प्यास भीतर है; हाथों में गिलास है; गिलास पर आंखें हैं; अचानक ठहर जाओ। न श्वास, न गति--मानो तुम मर गए। तब वही वृत्ति, वही प्यास ऊर्जा को मुक्त कर देगी, और वह मुक्त ऊर्जा तुम्हें तुम्हारे केंद्र पर पहुंचा देगी। क्यों? क्योंकि वृत्ति सदा बाहर जाती है। स्मरण रहे, वृत्ति का मतलब ही है बाहर जाती हुई ऊर्जा। एक और बात खयाल में रख लो कि ऊर्जा सदा गतिमान रहती है। या तो वह बाहर जाती है या भीतर आती है; ऊर्जा कभी ठहराव में नहीं होती है।
तीन बातें स्मरण रखो। एक, प्रयोग तभी करो जब वृत्ति वास्तविक हो। दो, रुकने के संबंध में विचार मत करो, बस रुक जाओ। तीन, प्रतीक्षा करो। जब तुम ठहर गए तो श्वास न चले, कोई गति न हो--बस प्रतीक्षा करो कि क्या होता है।
जब मैं कहता हूं कि ठहर जाओ तो उसका मतलब है पूरी तरह, समग्ररूपेण ठहर जाओ। कुछ भी गति न हो--मानो कि सारा जगत ठहर गया है; कोई गति नहीं है; केवल तुम हो। उस केवल अस्तित्व में अचानक केंद्र का विस्फोट होता है।
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