श्रीमद्भगवद्​गीता में योग शब्द का प्रयोग  व्यापक रूप में हुआ है | गीता के प्रत्येक अध्याय के नाम के साथ योग शब्द लगाया गया है जैसे ‘अर्जुन विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान कर्म सन्यास योग आदि। एक विद्वान् के अनुसार गीता में इस शब्द उपयोग एक उद्देश्य़ से किया गया है। उन का कहना है कि जिस काल में गीता कही गयी थी, उस समय कर्म का अर्थ प्रायः यज्ञादि जैसे अनुष्ठानों के सन्दर्भ में किया जाता था। इसलिए गीता में कर्म के साथ योग शब्द जोड़ कर इसे अनुष्ठानों से अलग कर दिया। इस योग में कर्म को ईश्वर प्राप्ति का एक साधन बताया गया है। गीता में कर्म योग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस के अनुसार कर्म के

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​​कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म योग