अर्धमत्स्येन्द्रासन

कमर और पीठ का दर्द दूर करे अर्धमत्स्येन्द्रासन अगर आप योग करने की शौकीन हैं तो, आपको यह अर्थमत्‍सयेन्‍द्रासन का पोज जरुर आता होगा। कहा जाता है कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरू स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यान किया करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रियाओं को लेकर अर्धमत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ है।

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की विधि-

  1. सर्वप्रथम बैठने की स्थिति में आइए अब दायें पैर को घुटने से मोड़कर  एड़ी  गुदाद्वार के नीचे  ले जाइए । 
  2. बायें पैर के पंजे को दायें पैर के घुटने के पास बाहर की तरफ रखिए । 
  3. अब दायें हाथ को बायें घुटने के बाहर से लाइए और बायें पैर के अंगूठे को पकडिए। 
  4. दोनों पैरों को लंबे करके चटाई पर बैठ जाइये। बायें पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी गुदाद्वार के नीचे जमाएं।
  5. पैर के तलवे को दाहिनी जंघा के साथ लगा दें। अब दाहिने पैर को घुटने से मोड़ कर खड़ा कर दें और बायें पैर की जंघा से ऊपर ले जाते हुए जंघा के पीछे जमीन के ऊपर रख दें।

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की प्रक्रिया और कैसे करें

  1. पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  2. बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)|
  3. दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
  4.  बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
  5. कमर, कन्धों व् गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
  6. रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  7. इसी अवस्था को बनाए रखें ,लंबी , गहरी साधारण साँस लेते रहें।
  8. साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़े,फिर कमर,फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
  9. दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
  10. साँस छोड़ते हुए सामने की ओर वापस आ जाएँ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन में लाभ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन से मेरूदण्ड स्वस्थ रहने से यौवन की स्फूर्ति बनी रहती है। रीढ़ की हड्डी तो मजबूत रहती ही है साथ में नसों की भी अच्‍छी कसरत हो जाती है। इसको नियमित रूप से करने पर पीठ, पेट के नले, पैर, गर्दन, हाथ, कमर, नाभि से नीचे के भाग एवं छाती की नाड़ियों को अच्छा खिंचाव मिलने से उन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फलतः बन्धकोष दूर होता है। जठराग्नि तीव्र होती है। कमर, पीठ और सन्धिस्थानों के दर्द जल्दी दूर हो जाते हैं।

  1. मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
  2. मेरुदंड का लचीलापन बढ़ता है।
  3. छाती को फ़ैलाने से फेफड़ो को ऑक्सीजन ठीक मात्रा में मिलती है|

इसके अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ हैं परंतु इसका उपयोग किसी दवा आदि की जगह नही किया जा सकता| यह आवश्यक है की आप यह योगासन किसी प्रशिक्षित श्री श्री योग (Sri Sri yoga) प्रशिक्षक के निर्देशानुसार ही सीखें और करें| यदि आपको कोई शारीरिक दुविधा है तो योगासन करने से पहले अपने डॉक्टर या किसीभी श्री श्री योग प्रशिक्षक से अवश्य संपर्क करें| श्री श्री योग कोर्स करने के लिए अपने नज़दीकी आर्ट ऑफ़ लिविंग सेण्टर पर जाएं| 

 

अर्धमत्स्येंद्रासन में सावधानी :

  • गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए।
  • रीढ़ में अकड़न से पीडि़त व्यक्तियों को यह आसन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  • एसिडिटी या पेट में दर्द हो तो इस आसन के करने से बचना चाहिए।
  • घुटने में ज़्यदा परेशानी होने से इस आसन के अभ्यास से बचें।
  • गर्दन में दर्द होने से इसको सावधानीपूर्वक करें।
अर्धमत्स्येन्द्रासन

Comments

कहते है कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरु स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यानस्थ रहा करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रिया को लेकर ही अर्धमत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ। अर्धमत्स्येंद्रासन से मेरुदंड स्वस्थ्य रहने से स्फूर्ति बनी रहती है।

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અર્ધમત્યસ્યેન્દ્રાસન

अर्धमत्स्येन्द्रासन

અર્ધમત્યસ્યેન્દ્રાસન (Half Spinal Twist)  
•    પૂર્ણ મત્સ્યેન્દ્રાસન અઘરું હોવાથી શરૂઆતમાં અર્ધમત્સ્યેન્દ્રાસન કરવાની સલાહ આપવામાં આવે છે. બંનેમાં ફરક માત્ર પગને ક્યાં રાખવામાં આવે તેનો જ છે. 
•    અર્ધમત્સ્યેન્દ્રાસનમાં જમણા પગને ડાબા સાથળના મૂળમાં નહિ મૂકતાં ઢીંચણમાંથી વાળી પગની એડીને સિવણી સ્થાન પાસે અડે એવી રીતે રાખવામાં આવે છે. એથી આ આસન કરવામાં ઓછી કઠિનાઈ પડે છે. બાકીની બધી રીતે તે પૂર્ણ મત્સ્યેન્દ્રાસન જેવું છે. 

આસનના લાભ

•    આ આસનના લાભ વિશે હઠયોગ પ્રદીપિકામાં નીચે પ્રમાણે ઉલ્લેખ કરવામાં આવેલો છે.
•    मत्स्येन्द्रपीठं जठरप्रदीप्तिं प्रचण्डरुग्मण्डलखण्डनास्त्रम् ।
•    अभ्यासतः कुण्डलिनीप्रबोधं चन्द्रस्थिरत्वं च ददाति पुंसाम् ॥२९॥
•    મત્સ્યેન્દ્રાસન કરવાથી જઠરાગ્નિ પ્રદીપ્ત થાય છે. જેથી ભૂખ સારી લાગે છે. પેટના અંદરના અવયવોનું સ્વાસ્થ્ય સુધરે છે. અજીર્ણ, મંદાગ્નિ જેવી ફરિયાદો દૂર થાય છે. પાચનક્રિયા સારી રીતે થાય છે. પ્રચંડ રોગોના સમુહના નાશ માટે મત્સ્યેન્દ્રાસન એક અસરકારક શસ્ત્ર જેવું લાભદાયી સિદ્ધ થાય છે. 
•    કુંડલિની ઉત્થાનમાં આ આસન લાભદાયી થાય છે. આ આસનની કરવાથી કુંડલિનીના પ્રબોધમાં મદદ મળે છે. ચંદ્રની સ્થિરતા થાય છે. તાળવાની ઉપરના પ્રદેશમાંથી સ્ત્રવતા અમૃતતત્વની પ્રાપ્તિ થાય છે અને યોગી અખંડ યૌવનને મેળવી શકે છે. 
•    આ આસન કરવાથી કરોડનો દરેક મણકો પોતાની ધરી પર દોરડીના વળની માફક ફરે છે. જેથી લીગામેન્ટસને પૂરતા પ્રમાણમાં લોહી મળે છે. એથી કરોડરજ્જુની સ્થિતિસ્થાપકતા સારી રહે છે ને ચિર યૌવનની પ્રાપ્તિ થાય છે. 
•    કરોડનાં મણકાં ખેંચાવાથી એમાંથી નીકળતા જ્ઞાનતંતુઓ પણ ખેંચાય છે. એથી એની અસર મગજમાંથી નીકળતા બાર મુખ્ય જ્ઞાનતંતુઓમાંથી એક - વેગસ નર્વને થાય છે. જેથી અનૈચ્છિક નાડીતંત્ર પર લાભદાયક અસર થાય છે. પરિણામે લીવર, જઠર, મૂત્રપિંડ, કીડની વગેરે આરોગ્યવાન બને છે. 
•    આ આસન કરવાથી પેટના, પગના, ગળાના, કેડ, છાતી, પેઠું, અને બરડાના ભાગમાં રહેલા વિવિધ sacro spinal musculature ને વ્યાયામ મળે છે. ફલતઃ રુધિરાભિસરણ સારી રીતે થાય છે. બરડાનો દુખાવો અને સંધિવા મટે છે. 
•    મત્સ્યેન્દ્રાસન કરવાથી પાંસળીઓ ખેંચાય છે. જેથી કફ પ્રકૃતિવાળા માટે આ આસન લાભદાયી નીવડે છે. શરીમાં રહેલી બોંતેર હજાર નાડીઓ શુદ્ધ થાય છે. 

સાવધાની

•    આ આસનમાં બરડાના, કમરના સ્નાયુઓ ખેંચાય છે એથી જેમને કમરનો દુખાવો હોય, કે જેમના પીઠના સ્નાયુ ખેંચાયલો હોય તેમણે આ આસન કરવું નહીં. 
•    આસનની સ્થિતિમાં શરીરનું સમતોલન જાળવવું અગત્યનું છે. આંચકો આવે તેવી રીતે આસન છોડતાં કે શરીરનું સમતોલન ડગમગે ત્યારે ઝાટકો આપી સમતુલન જાળવવા જતાં સ્નાયુઓને નુકસાન થવાનો સંભવ છે. એથી સાવધાનીપૂર્વક આ આસન કરવું.
 


कमर और पीठ का दर्द दूर करे अर्धमत्स्येन्द्रासन अगर आप योग करने की शौकीन हैं तो, आपको यह अर्थमत्‍सयेन्‍द्रासन का पोज जरुर आता होगा। कहा जाता है कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरू स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यान किया करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रियाओं को लेकर अर्धमत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ है।

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की विधि-

  1. सर्वप्रथम बैठने की स्थिति में आइए अब दायें पैर को घुटने से मोड़कर  एड़ी  गुदाद्वार के नीचे  ले जाइए । 
  2. बायें पैर के पंजे को दायें पैर के घुटने के पास बाहर की तरफ रखिए । 
  3. अब दायें हाथ को बायें घुटने के बाहर से लाइए और बायें पैर के अंगूठे को पकडिए। 
  4. दोनों पैरों को लंबे करके चटाई पर बैठ जाइये। बायें पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी गुदाद्वार के नीचे जमाएं।
  5. पैर के तलवे को दाहिनी जंघा के साथ लगा दें। अब दाहिने पैर को घुटने से मोड़ कर खड़ा कर दें और बायें पैर की जंघा से ऊपर ले जाते हुए जंघा के पीछे जमीन के ऊपर रख दें।

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की प्रक्रिया और कैसे करें

  1. पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  2. बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)|
  3. दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
  4.  बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
  5. कमर, कन्धों व् गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
  6. रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  7. इसी अवस्था को बनाए रखें ,लंबी , गहरी साधारण साँस लेते रहें।
  8. साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़े,फिर कमर,फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
  9. दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
  10. साँस छोड़ते हुए सामने की ओर वापस आ जाएँ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन में लाभ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन से मेरूदण्ड स्वस्थ रहने से यौवन की स्फूर्ति बनी रहती है। रीढ़ की हड्डी तो मजबूत रहती ही है साथ में नसों की भी अच्‍छी कसरत हो जाती है। इसको नियमित रूप से करने पर पीठ, पेट के नले, पैर, गर्दन, हाथ, कमर, नाभि से नीचे के भाग एवं छाती की नाड़ियों को अच्छा खिंचाव मिलने से उन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फलतः बन्धकोष दूर होता है। जठराग्नि तीव्र होती है। कमर, पीठ और सन्धिस्थानों के दर्द जल्दी दूर हो जाते हैं।

  1. मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
  2. मेरुदंड का लचीलापन बढ़ता है।
  3. छाती को फ़ैलाने से फेफड़ो को ऑक्सीजन ठीक मात्रा में मिलती है|

इसके अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ हैं परंतु इसका उपयोग किसी दवा आदि की जगह नही किया जा सकता| यह आवश्यक है की आप यह योगासन किसी प्रशिक्षित श्री श्री योग (Sri Sri yoga) प्रशिक्षक के निर्देशानुसार ही सीखें और करें| यदि आपको कोई शारीरिक दुविधा है तो योगासन करने से पहले अपने डॉक्टर या किसीभी श्री श्री योग प्रशिक्षक से अवश्य संपर्क करें| श्री श्री योग कोर्स करने के लिए अपने नज़दीकी आर्ट ऑफ़ लिविंग सेण्टर पर जाएं| 

 

अर्धमत्स्येंद्रासन में सावधानी :

  • गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए।
  • रीढ़ में अकड़न से पीडि़त व्यक्तियों को यह आसन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  • एसिडिटी या पेट में दर्द हो तो इस आसन के करने से बचना चाहिए।
  • घुटने में ज़्यदा परेशानी होने से इस आसन के अभ्यास से बचें।
  • गर्दन में दर्द होने से इसको सावधानीपूर्वक करें।

Aasan

  • અર્ધમત્સ્યેન્દ્રાસન

    Ardha Matsyendrasana

    મત્સ્યેન્દ્રનાથ નામના મહાન યોગીએ આ આસન સીદ્ધ કર્યું હતું, આથી એનું નામ આ આસનને આપવામાં આવ્યું છે. જો કે પુર્ણ મત્સ્યેન્દ્રાસન સીદ્ધ કરવું ઘણું મુશ્કેલ હોઈ અર્ધ મત્સ્યેન્દ્રાસન જે કંઈક સરળ હોવાથી એની જ વાત આપણે કરીશું. આમ તો આ આસન પણ એટલું બધું સરળ તો નથી.

    ગૌમુખાસનની જેમ જ આ આસનમાં પણ શરુઆતમાં પગ લાંબા કરી સીધા ટટાર બેસો. જમણો પગ પુરેપુરો વાળીને એની એડી ડાબો પગ જરા ઉંચો કરીને એને અડીને અંડકોશની નીચે જેને શીવની નાડી કે વીર્યનાડી કહે છે ત્યાં મુકો. જમણા પગનું તળીયું ડાબા પગની જાંઘને અડેલું રહેશે. ડાબા પગને હજુ વધારે વાળી જમણા સાથળને અડકાવવો. ડાબા પગના ઢીંચણ પર જમણા હાથની બગલનો ભાગ મુકી ડાબી તરફ વળી જમણા હાથથી પગ પકડો. જે દીશામાં શરીર વાળીએ તે તરફ માથું પણ વાળવું અને આળસ મરડીએ એ રીતે શરીર જેટલું વધારેમાં વધારે વાળી શકો તેટલું ધીમે ધીમે વાળવું, અને ખભાની સમરેખામાં લાવવાનો પ્રયત્ન કરવો. પણ એમ કરતી વખતે શરીરને બીલકુલ ઝટકો ન મારવો. આ આસનનો હેતુ કરોડ વાળવાનો છે. એ જ રીતે જમણી તરફ વળીને એટલે કે ડાબો પગ વાળીને એની એડી જમણા પગની જાંઘને અડકાડીને પણ આ આસન કરવું. બંને તરફ આ આસન એક એક મીનીટ રાખી શકાય.

    આ આસનથી પેટની તકલીફમાં લાભ થાય છે અને આંતરડાં મજબુત બને છે. આથી જુની કબજીયાત મટે છે. કમરની લચકમાં સુધારો થાય છે. સ્વપ્નદોષ દુર કરવામાં તથા બ્રહ્મચર્યના પાલનમાં પણ આ આસન લાભકર્તા ગણાય છે.

अर्धमत्स्येन्द्रासन

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कहते है कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरु स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यानस्थ रहा करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रिया को लेकर ही अर्धमत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ। अर्धमत्स्येंद्रासन से मेरुदंड स्वस्थ्य रहने से स्फूर्ति बनी रहती है।

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Ardha Matsyendrasana

अर्धमत्स्येन्द्रासन

Ardha Matsyendrasana is also known as half lord of the fishes pose. This yoga pose is very common for people who are suffering from spinal problems. Yoga Matsyendrasana is named after a great yogi Matsyendranath, who was the actual founder of yoga. This yoga pose not only helps in curing nervous disorders, but also provides peace of mind to all its practitioners

This pose often gives its practitioner a perfect fit and provides many health benefits. This pose not only energizes our body, but also helps in restoring the balance of the body. Follow the steps given below, if you want to learn this asana.

Steps For Doing Ardha Matsyendrasana

1. Just place a mat on the floor.
2. Firstly, just sit in Padmasana pose and keep your body in a comfort zone. Allow the whole body to be in relaxing mode.
3. Now carefully start bending backwards. Give support to your body with your arms and your elbows.
4. Now start lifting your chest slightly. Slowly take your head back and very carefully start lowering the crown of your head towards the floor. Make sure that it doesn’t rest on the floor.
5. Now slowly, hold your big toes and just rest your elbows on the floor.
6. Allow your head, buttocks and legs to support the weight of your whole body.
7. Now carefully return your whole body back to the starting position. Just reverse the order of your movements.
8. Now you can simply repeat the asana with the legs crossed the other way.
9. Make sure to hold this asana for minimum 3 minutes.
10. Also breathe slowly and deeply when you’re in the final position.

You can practice this asana daily. For people who have just started this asana may find this asana to be a little difficult. So during this time, you can start with a bit of variation. You can practice this yoga with twists. Twists provide you with lots of flexibility and will definitely help you in balancing. Matsyendrasana helps in keeping you healthy, young and energetic.

So make sure to practice this asana for 5 minutes early morning. People suffering from heart disease and backache should avoid this asana. Consult your doctor before practicing this particular asana. Practice this asana within your limits. This asana provides you with numerous benefits.

 

Benefits Of Matsyendrasana

Matsyendrasana is considered to provide its practitioners with immense benefits. It claims to destroy deadly diseases in a human body. It also helps in awakening of the cosmic energy called kundalini within your body.

It helps in stretching of your hips, shoulder, neck and spine. It tends to relieve your body from all kinds of pain and fatigue.

If you’re having the pain of sciatica or a severe backache, then practicing this particular pose will relieve your body in the long run. It is considered to be therapeutically effective for people having asthma problems and fertility disorders.

This asana stimulates your digestive fiber and helps in increasing your appetite. People who often suffer from the problem of digestion should include this asana in their day to day activities.

A lot of people may be aware that this asana also stimulates your kidney and liver and helps in the proper functioning of the body. A lot of women practice this yoga to tone their abs. Now a day’s both men and women are very much health conscious. So they try and include yoga in their day list activities. It not only energizes their body, but also resolves their body problems in the long run.


कमर और पीठ का दर्द दूर करे अर्धमत्स्येन्द्रासन अगर आप योग करने की शौकीन हैं तो, आपको यह अर्थमत्‍सयेन्‍द्रासन का पोज जरुर आता होगा। कहा जाता है कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरू स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यान किया करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रियाओं को लेकर अर्धमत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ है।

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की विधि-

  1. सर्वप्रथम बैठने की स्थिति में आइए अब दायें पैर को घुटने से मोड़कर  एड़ी  गुदाद्वार के नीचे  ले जाइए । 
  2. बायें पैर के पंजे को दायें पैर के घुटने के पास बाहर की तरफ रखिए । 
  3. अब दायें हाथ को बायें घुटने के बाहर से लाइए और बायें पैर के अंगूठे को पकडिए। 
  4. दोनों पैरों को लंबे करके चटाई पर बैठ जाइये। बायें पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी गुदाद्वार के नीचे जमाएं।
  5. पैर के तलवे को दाहिनी जंघा के साथ लगा दें। अब दाहिने पैर को घुटने से मोड़ कर खड़ा कर दें और बायें पैर की जंघा से ऊपर ले जाते हुए जंघा के पीछे जमीन के ऊपर रख दें।

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की प्रक्रिया और कैसे करें

  1. पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  2. बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)|
  3. दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
  4.  बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
  5. कमर, कन्धों व् गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
  6. रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  7. इसी अवस्था को बनाए रखें ,लंबी , गहरी साधारण साँस लेते रहें।
  8. साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़े,फिर कमर,फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
  9. दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
  10. साँस छोड़ते हुए सामने की ओर वापस आ जाएँ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन में लाभ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन से मेरूदण्ड स्वस्थ रहने से यौवन की स्फूर्ति बनी रहती है। रीढ़ की हड्डी तो मजबूत रहती ही है साथ में नसों की भी अच्‍छी कसरत हो जाती है। इसको नियमित रूप से करने पर पीठ, पेट के नले, पैर, गर्दन, हाथ, कमर, नाभि से नीचे के भाग एवं छाती की नाड़ियों को अच्छा खिंचाव मिलने से उन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फलतः बन्धकोष दूर होता है। जठराग्नि तीव्र होती है। कमर, पीठ और सन्धिस्थानों के दर्द जल्दी दूर हो जाते हैं।

  1. मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
  2. मेरुदंड का लचीलापन बढ़ता है।
  3. छाती को फ़ैलाने से फेफड़ो को ऑक्सीजन ठीक मात्रा में मिलती है|

इसके अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ हैं परंतु इसका उपयोग किसी दवा आदि की जगह नही किया जा सकता| यह आवश्यक है की आप यह योगासन किसी प्रशिक्षित श्री श्री योग (Sri Sri yoga) प्रशिक्षक के निर्देशानुसार ही सीखें और करें| यदि आपको कोई शारीरिक दुविधा है तो योगासन करने से पहले अपने डॉक्टर या किसीभी श्री श्री योग प्रशिक्षक से अवश्य संपर्क करें| श्री श्री योग कोर्स करने के लिए अपने नज़दीकी आर्ट ऑफ़ लिविंग सेण्टर पर जाएं| 

 

अर्धमत्स्येंद्रासन में सावधानी :

  • गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए।
  • रीढ़ में अकड़न से पीडि़त व्यक्तियों को यह आसन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  • एसिडिटी या पेट में दर्द हो तो इस आसन के करने से बचना चाहिए।
  • घुटने में ज़्यदा परेशानी होने से इस आसन के अभ्यास से बचें।
  • गर्दन में दर्द होने से इसको सावधानीपूर्वक करें।

Aasan

  • Ardha Matsyendrasana

    Ardha Matsyendrasana

    Ardha Matsyendrasana or the Spinal Twist increases the elasticity of the spine due to the twist. This asana improves the health and performance of spleen, kidney, and bowels are stimulated. This asana must be done when you are in an empty stomach condition. Make sure you have your meals at least four hours before the practice.

    How to do Ardha Matsyendrasana? 

    • Sit down on the floor. Stretch your legs out in front of you.
    • Bend your right leg at the knee. Bring your right foot close to your anus, against the inside of your left thigh.
    • Bend your left leg by raising your knee. Place your left foot flat on the floor to the right of your right knee. 
    • Stretch your right hand backward and place your palm flat on the floor behind your back.
    • Raise your left arm over your head. Stretch it around your right knee and grasp your right ankle.
    • Maintain the posture for 30 seconds while breathing evenly. 
    • Repeat the posture on the other side.

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कहते है कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरु स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यानस्थ रहा करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रिया को लेकर ही अर्धमत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ। अर्धमत्स्येंद्रासन से मेरुदंड स्वस्थ्य रहने से स्फूर्ति बनी रहती है।

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अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की विधि-

  1. सर्वप्रथम बैठने की स्थिति में आइए अब दायें पैर को घुटने से मोड़कर  एड़ी  गुदाद्वार के नीचे  ले जाइए । 
  2. बायें पैर के पंजे को दायें पैर के घुटने के पास बाहर की तरफ रखिए । 
  3. अब दायें हाथ को बायें घुटने के बाहर से लाइए और बायें पैर के अंगूठे को पकडिए। 
  4. दोनों पैरों को लंबे करके चटाई पर बैठ जाइये। बायें पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी गुदाद्वार के नीचे जमाएं।
  5. पैर के तलवे को दाहिनी जंघा के साथ लगा दें। अब दाहिने पैर को घुटने से मोड़ कर खड़ा कर दें और बायें पैर की जंघा से ऊपर ले जाते हुए जंघा के पीछे जमीन के ऊपर रख दें।

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की प्रक्रिया और कैसे करें

  1. पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  2. बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)|
  3. दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
  4.  बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
  5. कमर, कन्धों व् गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
  6. रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  7. इसी अवस्था को बनाए रखें ,लंबी , गहरी साधारण साँस लेते रहें।
  8. साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़े,फिर कमर,फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
  9. दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
  10. साँस छोड़ते हुए सामने की ओर वापस आ जाएँ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन में लाभ| 

अर्धमत्स्येन्द्रासन से मेरूदण्ड स्वस्थ रहने से यौवन की स्फूर्ति बनी रहती है। रीढ़ की हड्डी तो मजबूत रहती ही है साथ में नसों की भी अच्‍छी कसरत हो जाती है। इसको नियमित रूप से करने पर पीठ, पेट के नले, पैर, गर्दन, हाथ, कमर, नाभि से नीचे के भाग एवं छाती की नाड़ियों को अच्छा खिंचाव मिलने से उन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फलतः बन्धकोष दूर होता है। जठराग्नि तीव्र होती है। कमर, पीठ और सन्धिस्थानों के दर्द जल्दी दूर हो जाते हैं।

  1. मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
  2. मेरुदंड का लचीलापन बढ़ता है।
  3. छाती को फ़ैलाने से फेफड़ो को ऑक्सीजन ठीक मात्रा में मिलती है|

इसके अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ हैं परंतु इसका उपयोग किसी दवा आदि की जगह नही किया जा सकता| यह आवश्यक है की आप यह योगासन किसी प्रशिक्षित श्री श्री योग (Sri Sri yoga) प्रशिक्षक के निर्देशानुसार ही सीखें और करें| यदि आपको कोई शारीरिक दुविधा है तो योगासन करने से पहले अपने डॉक्टर या किसीभी श्री श्री योग प्रशिक्षक से अवश्य संपर्क करें| श्री श्री योग कोर्स करने के लिए अपने नज़दीकी आर्ट ऑफ़ लिविंग सेण्टर पर जाएं| 

 

अर्धमत्स्येंद्रासन में सावधानी :

  • गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए।
  • रीढ़ में अकड़न से पीडि़त व्यक्तियों को यह आसन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  • एसिडिटी या पेट में दर्द हो तो इस आसन के करने से बचना चाहिए।
  • घुटने में ज़्यदा परेशानी होने से इस आसन के अभ्यास से बचें।
  • गर्दन में दर्द होने से इसको सावधानीपूर्वक करें।
अर्धमत्स्येन्द्रासन

Comments

कहते है कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरु स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यानस्थ रहा करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रिया को लेकर ही अर्धमत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ। अर्धमत्स्येंद्रासन से मेरुदंड स्वस्थ्य रहने से स्फूर्ति बनी रहती है।

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