9 महीने तक नियम से सुबह शाम आधा घंटा प्राणायाम को परहेजों के साथ करने से निश्चित रूप से हर खतरनाक से खतरनाक बीमारी में भी आराम मिलते देखा गया है !
प्राण स्वस्थ हो तो शरीर को कोई भी बीमारी छू नहीं सकती है !
सिर्फ एक मणिपूरक चक्र के ही जागने भर से शरीर के सभी रोगों का नाश होने लगता है जबकि भारतीय हिन्दू धर्म ग्रन्थों में बहुत से ऐसे अद्भुत योग, आसन व प्राणायाम का वर्णन है जो एक साथ कई चक्रों को जगाते हैं जिनसे पूरा शरीर ही एकदम स्वस्थ और दिव्य होने लगता है। सिर्फ योग, आसन व प्राणायाम कैसे, किसी भी मानव शरीर का बिना किसी मेकअप के, सही में कायाकल्प कर देते हैं !
(नोट – प्राणायाम व योग के विभिन्न कॉम्बिनेशन से निश्चित हर रोग का नाश किया जा सकता है)
प्राणस्य आयाम: इत प्राणायाम’। ”श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम”-
अर्थात प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम (Pranayama) है। सामान्य भाषा में जिस क्रिया से हम श्वास लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं उसे प्राणायाम (pranayam) कहते हैं।

प्राणायाम से मन-मस्तिष्क की सफाई की जाती है। हमारी इंद्रियों द्वारा उत्पन्न दोष प्राणायाम से दूर हो जाते हैं। कहने का मतलब यह है कि प्राणायाम करने से हमारे मन और मस्तिष्क में आने वाले बुरे विचार समाप्त हो जाते हैं और मन में शांति का अनुभव होता है और शरीर की असंख्य बीमारियो का खात्मा होता है।
सांस लेने की क्रिया के संबंध में योगशास्त्र (Ashtanga Yoga) के अनुसार 10 प्रकार की वायु बताई गई है। यह 10 प्रकार की वायु इस प्रकार है-
1. प्राण,
2. अपान,
3. समान,
4. उदान,
5. ज्ञान,
6. नाग,
7. कूर्म,
8. क्रीकल,
9. देवदत्त
10. धनन्जय।
अच्छे स्वास्थ्य में इन सभी प्रकार की वायु पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है।

प्राण के पाँच प्रकार हैं – अपान, व्यान, उदान, समान, प्राण। हमारा पूरा शरीर इसी प्राण के आधार पर चल रहा है। 1. प्राण वायु का क्षेत्र कंठ नली से श्वास पटल के मध्य है, इसको यह प्राणवायु कंट्रोल करता है ।
2. अपान – नाभि के नीचे जितने अंग हैं, इनकी कार्य प्रणाली को अपानवायु नियंत्रित करता है। जो कुछ हम खाते हैं उसको पचाना और जो व्यर्थ है उसे मल – मूत्र के रूप में बाहर निकलना ; यह कार्य अपानवायु से संचालित होते हैं। अपान हमारे पाचनक्रिया को कंट्रोल करती है, जैसे गालब्लेडर, लिवर, छोटी आंत, बड़ी आंत ; ये सब इसी क्षेत्र में आते हैं।
3. उदान – कंठ के साथ जुड़े जितने भी अंग हैं; आँख, कान, नाक, जीभ, बोलना, स्वाद लेना; ये ज्ञानेन्द्रियाँ जो हैं, इनके सारे कार्य उदानवायु से होते हैं। जब तक उदानवायु है , तब तक आँखें देखेंगी, कान सुनेंगे, जीभ बोलेगी, नाक सूंघेगा। उदानवायु के द्वारा हमारी जो कर्मेन्द्रियाँ हाथ – पैर और नाभि के ऊपर के सारे अंग ; जैसे हृदय की धड़कन , हृदय की धमनियां आती हैं, फेंफडे यह सब उदान की शक्ति से कार्य करते हैं।
4. समान- यह हमारे शरीर के मध्य भाग में होती हैं। अपान और उदान की जो बैलेंसिंग है, यह समान वायु के द्वारा होती है।
5. व्यान – यह प्राण हमारे पूरे शरीर में है। इसको हम सर्वव्यापी भी बोलते हैं। अर्थात जो पूरे शरीर में फैला हुआ है।

इन पंचप्राणों के भी पाँच उपप्राण हैं – जैसे हिचकी, आंखों का झपकाना, यह भी प्राण से हो रहा है।
अब प्राणायाम का सीधा सम्बन्ध इन्ही पंचप्राणों (prana) से है। पूरे शरीर का कार्य इन पंचप्राणों से हो रहा है और इन पंचप्राणों पर सीधा प्रभाव देता है- प्राणायाम।

नाक से बाहरी वायु का भीतर प्रवेश करना श्वास कहलाता है और भीतर की वायु का बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है। इन दोनों के नियंत्रण का नाम प्राणायाम है। प्राणायाम में हम पहले श्वास को अंदर खींचते हैं, जिसे पूरक (puraka) कहते हैं। पूरक मतलब फेफड़ों में साँस को भरना। श्वास लेने के बाद कुछ देर के लिए श्वास को फेफड़ों में ही रोका जाता है, जिसे कुंभक (kumbhaka) कहते हैं। इसके बाद जब श्वास को बाहर छोड़ा जाता है तो उसे रेचक (rechaka) कहते हैं। इस तरह प्राणायाम की सामान्य विधि पूर्ण होती है। भीतर की श्वास को बाहर निकालकर बाहर ही रोके रखना बाह्यकुंभक कहलाता है।

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शरीर की हर बीमारी का नाश कर सकने में सक्षम प्राणायाम: