प्राणायम योग की एक महत्वपूर्ण क्रिया है जिसमे हम अपने शरीर के पाचनतंत्र को सुद्रिड करके समस्त हैं अंदरूनी बिमारियों से मुक्ति पा सकते हैं ! जैसा कि सर्बविधित है की हमारा सरीर पञ्च तत्वों से बना है ! जो कि समय के साथ-साथ बनते टूटते रहते हैं ! उन तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए हम खाना खाते हैं, पानी की पूर्ती के लिए पानी पीते हैं, और आक्सीजन की पूर्ती के लिए साँस लेते हैं तथा बेकार हुए तत्वों को बिभिन्न रास्तों से सरीर से बाहर किया जाता है ! इस भोजन,पानी को ग्रहण करने से लेकर अनुपयोगी तत्वों को सरीर से बाहर करने तक की क्रियाओं को उपापचय क्रिया कहते हैं ! तथा साँस लेने छोड़ने की क्रिया को श्वासोश्वास क्रिया कहते हैं !
किन्ही कारणों से अगर हमारी उपापचय क्रिया या श्वासोश्वास की क्रिया में बाधाएं पड़ती हैं तो बिभिन्न प्रकार रोग उत्पन्न हो जाते हैं ! लेकिन अगर हम निरंतर प्राणायम करते हैं तो इनसे बचा जा सकता है ! प्राणायाम करने के लिए समय की या किसी खास आसन की जरूरत नहीं है ! किसी भी समय और किसी भी तरह की आराम की स्तिथि में बैठकर या बीमार होने से लेटकर भी किया जा सकता है और केवल खाने के तुरंत बाद के समय को छोड़कर कभी भी किया जा सकता है ! प्राणायाम मुख्यतया निम्न ७ प्रकार की कृयाओं के योग को कहते हैं जिन्हें निरंतर क्रमवार करने से सभी प्रकार के रोगों में निश्चित लाभ होता है !
१- भ्रस्तिका.
२- अनुलोम विलोम.
३- कपालभाती.
४- वाह्य प्राणायाम.
५- उज्जई
६- भ्रामिका.
७- उद्गीत.
इन क्रियाओं को करने के लिए सबसे पहले हम किसी शान्त जगह में अपनी सुबिधा के अनुसार आसन चुनकर आराम से बैठते हैं तथा अपना पूरा ध्यान केन्द्रित करके प्राणायाम शुरु करते हैं !
भ्रस्तिका- इस क्रिया में हम गहरी साँस फेफड़ो में भरकर तेजी से छोड़ते हैं ! ऐसा करने से एक तो हमारे फेफड़ों का फैलाव बढ़ता है जिससे उनमे ज्यादा हवा भरने से ज्यादा ऑक्सीजन को अवशोषित किया जा सकता है और दूसरा तेजी से स्वास बाहर छोड़ने से साँस की नालियों में आई रुकावट को दूर किया जा सकता है. इस क्रिया को कम से कम पांच बार करना चाहिए या समय होने पर कितनी बार भी कर सकते हैं ! इस क्रिया से फेफड़ों की सभी बिमारियों से निजात मिल सकती है तथा रोकथाम हो जाती है !
अनुलोम विलोम- प्राणायाम की ये क्रिया बहुत ही महत्वपूर्ण है या यों कहें की अपना आप में सम्पूर्ण प्राणायाम है ! इसके द्वारा हमारे तंत्रिका तंत्र को साधा जा सकता है जो सरीर की सभी क्रियाकलापों के लिए जिम्मेदार होते हैं ! इस क्रिया में हम दायें हाथ के अंगूठे की मदद से दायीं नाक को बंद करते हैं तथा बायीं नाक से गहरी साँस फेफड़ों में भरते हैं ! फिर किसी भी उंगली की मदद से बायीं नाक को बंद करके दायीं नक् से धीरे-धीरे साँस बाहर छोड़ते हैं ! इस क्रिया के समय का अनुपात अगर २:१:४:१ यानि जितना समय आपको साँस अन्दर खीचने में लगा उसके आधे समय तक साँस को अन्दर रोकें तथा साँस छोड़ने में साँस लेने के समय से दो गिना समय लगायें तथा फिर पहले की तरह साँस रोके रखें तथा अब यही क्रिया बिपरीत यानि दायें नाक से साँस ले और बाएं नाक से छोड़ें ! ये इस क्रिया का एक चक्र पूरा हुआ. ऐसे ही चक्र समय के अनुसार ज्यादा से ज्यादा बार दोहराएँ ! इस क्रिया से लगभग सभी रोगों में लाभ होता है इसलिय इसे अधिक समय देना चाहिए !
कपालभाति- जैसा की सर्बविधित है कि पाचनतंत्र की कमी अनेकों रोगों को जन्म देती है ! प्राणायाम की इस क्रिया को करने से पाचनतंत्र में लाभ होता है ! साथ ही पेट की मांस पेशियां तथा स्वास की नलियां भी मजबूत होती हैं ! ये क्रिया करने के लिए पद्मासन या सुखासन में बैठ कर ध्यान मुद्रा बनायीं जाती है तथा साँस को पेट की मांस पेशियों को झटके के साथ सिकोड़ कर तेजी से छोड़ा जाता है ! ये क्रिया कम से कम ५ मिनट तक करनी चाहिए ! जिससे पेट के सभी रोगों को ठीक किया जा सकता है तथा रोगों की रोकथाम की जा सकती है !
वाह्य प्राणायाम- प्राणायाम की इस क्रिया से भी पेट की मांस पेशियों को मजबूती मिलती है. जिससे अनेकों प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है ! इस क्रिया में सबसे पहले लम्बी साँस लेते हैं फिर धीरे धीरे पूरी साँस छोड़ते है जिससे फेफड़े पूरी तरह खली हो जाएँ अब पेट की मांसपेसियों को सिकोड़ कर पेट की आंतों को ऊपर की और खींचते हैं तथा थोड़ी को छाती से लगाकर सामर्थ के अनुसार कुछ देर इसी स्तिथि में रुकते हैं फिर धीरे धीरे साँस लेते हुए सामान्य स्तिथि में आते हैं ! ये क्रिया कम से कम ५ बार दोहरानी चाहिए !
उज्जई- इस क्रिया से खासकर थाईरोइड और गले की बिमारियों में लाभ होता है. इस क्रिया में गले की मांसपेसियों को सिकोड़ कर तेजी से आवाज के साथ साँस खींचते हैं ! ये क्रिया कम से कम एक मिनट तक करते हैं !
भ्रान्म्री- जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है की इस क्रिया का सम्बन्ध भंवरे से होगा . प्राणायाम की इस क्रिया में सुखासन या पद्मासन में बैठ कर हाथ के अंगूठों से दोनों कानों को बंद करते हैं और दोनों हाथों की बीच की उँगलियों से दोनों आँखों को बंद करते हैं तथा तर्जनी उँगलियों को दोनों भोंओं से लगाकर रखते हैं ! फिर गहरी साँस लेते हैं और धीरे धीरे भँवरे की तरह हलकी आवाज के साथ धीरे धीरे छोड़ते हैं ! ये क्रिया करते समय ध्यान आवाज पर केन्द्रित करते हैं तथा इसी क्रिया को कम से कम १० बार दोहराते हैं ! इस क्रिया से मानसिक शांति मिलती है और उच्च रक्त चाप और तंत्रिका तंत्र सम्बंधित रोगों में बहुत जल्दी आराम मिलता है !
उद्गीत- इस प्राणायाम को भी भ्रान्म्री की तरह ही पद्मासन या शुखासन में बठकर ध्यानमुद्रा बनाते हैं और लम्बी साँस खींचकर ॐ की ध्वनि के साथ ध्यान केन्द्रित करते हुए धीरे धीरे छोड़ते हैं ! इस प्रकार की क्रिया में कम से कम एक मिनट का समय लग्न चाहिए ! तथा १० से अधिक बार इस क्रिया को दोहराते हैं ! इस क्रिया से आत्म सुद्धि तथा मानसिक शांति मिलती है तथा मानसिक और तनाव से होने वाले रोगों में अत्यधिक लाभ मिलता है !
रोजाना नियमित सुबह साम नित्य क्रिया से निवृत्त होकर प्राणायाम का अभ्यास करने से सारे रोग दूर हो जाते हैं और समस्त सरीर चुस्त और दुरुस्त रहता है !
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