शरीर की शुद्घि की प्राचीन आयुर्वेदिक पद्घति है पंचकर्म। आयुर्वेद के अनुसार, चिकित्सा के दो प्रकार होते हैं- शोधन चिकित्सा एवं शमन चिकित्सा। जिन रोगों से मुक्ति औषधियों द्वारा संभव नहीं होती, उन रोगों के कारक दोषों को शरीर से बाहर कर देने की पद्घति शोधन कहलाती है। यही शोधन चिकित्सा पंचकर्म है। पंचकर्म चिकित्सा में केरल विश्वप्रसिद्घ है। अब भारत के बाकी राज्यों में भी इसका बोलबाला बढ़ रहा है।
केरल की ये आयुर्वेदिक पद्धति अब सिर्फ दक्षिण में ही नहीं, भारत के हर प्रांत में मशहूर हो रही है। हमारे यहां इलाज के लिए आने वालों में विदेशी भी काफी संख्या में शामिल हैं। वैसे तो पंचकर्म पद्घति में पांच कर्म शामिल होते हैं, लेकिन अब केवल चार कर्मों का ही इस्तेमाल होता है। वमन, विरेचन, वस्ति और नस्य। रक्तमोक्षण का इस्तेमाल अब नहीं होता। इसके अलावा पूर्व कर्म में मसाज, स्टीम बाथ, कटि-स्नान, फुट मसाज, फेशियल एंड फेस पैक और वेट लॉस पैकेज का प्रयोग करते हैं। इस प्रक्रिया का उपयोग मुख्यत: वात, पित्त, कफ त्रिदोषों को संतुलन में लाने के लिए किया जाता है।
चिकित्सा जगत की अनेक विधाओं ने कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन आयुर्वेद आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कल था। आयुर्वेद पौराणिक हिंदी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है जीवन का ज्ञान। पांच हजार वर्ष पुराना होते हुए भी आयुर्वेद की मान्यता में आज भी कोई कमी नहीं आई है। आज तो इसकी महत्ता और भी बढ़ती जा रही है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में ही पंचकर्म के माध्यम से विभिन्न असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान आज कई मानसिक रोगों व तनाव का शिकार हो चुका है, लेकिन इन समस्याओं का इलाज भी ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत्त केरल की पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में संभव है। इस पद्धति में हर्बल तेलों और पाउडरों से मसाज द्वारा प्राकृतिक वातावरण में व्यक्ति का उपचार किया जाता है।
यह पद्धति दीर्घकालिक रोगों से मुक्ति दिलाने में काफी लाभकारी साबित होती है। पंचकर्म विधि से शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त बनाया जाता है। इससे शरीर की सभी शिराओं की सफाई हो जाती है और शरीर के सभी सिस्टम ठीक से काम करने लगते हैं। पंचकर्म के जरिए रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है। पंचकर्म में तीन तरह से शरीर की शुद्धि की जाती है।
पूर्व कर्म-पंचकर्म से पहले शरीर को स्नेहन और स्वेदन विधियों से संस्कारित करके प्रधान कर्म के लिए तैयार किया जाता है। स्नेहन दो प्रकार से करते हैं। इसमें घृत, तेल, वसा और मज्जा कराते हैं और वसा आदि पदार्थों से मालिश की जाती है। स्वेदन में शरीर से पसीने के माध्यम से विकार निकालने की प्रक्रिया को स्वेदन कहते हैं। इसमें भाप स्नान का प्रयोग किया जाता है।
प्रधान कर्म- इस पद्धति में अनेक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इनकी प्रक्रियाएं इस प्रकार हैं:
वमन- पंचकर्म का पहला कर्म वमन है। कफ प्रधान रोगों को वमन करने वाली औषधियां देकर वमन करवाकर ठीक किया जाता है।
विरेचन- पित्त दोष विरेचन औषधियों के द्वारा विरेचन करवा कर ठीक किया जाता है।
वस्ति- वात दोष को बाहर करने के लिए ये विधि अपनाई जाती है। इसमें गुदा के द्वारा वस्तियंत्र से औषधि को अंदर प्रवेश कराकर बाहर निकाला जाता है।
रक्तमोक्षण- इसमें रक्त खराब हो जाने से होने वाले रोगों से मुक्ति के लिए रक्त को बाहर निकाला जाता है। शिराओं को काटकर या कनखजूरे या लीच चिपका कर अषुद्ध रक्त बाहर निकालने की कोशिश की जाती है।
नस्य- इस चिकित्सा में नाक के छिद्रों से औषधि अंदर डालकर कंठ तथा सिर के दोषों को दूर किया जाता है।
पंचकर्म चिकित्सा के लाभ
शरीर पुष्ट व बलवान होता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
शरीर की क्रियाओं का संतुलन पुन: लौट आता है।
रक्त शुद्घि से त्वचा कांतिमय होती है।
इंद्रियों और मन को शांति मिलती है।
दीर्घायु प्राप्त होती है और बुढ़ापा देर से आता है।
रक्त संचार बढ़ता है।
मानसिक तनाव में कारगर है।
अतिरिक्त चर्बी को हटाकर वजन कम करता है।
आर्थराइटिस, मधुमेह, तनाव, गठिया, लकवा आदि रोगों में राहत मिलती है।
स्मरण शक्ति बढ़ती है

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