पश्चिम अर्थात पीछे का भाग- पीठ। पीठ में खिंचाव उत्पन्न होता है, इसीलिए इसे पश्चिमोत्तनासन कहते हैं। इस आसन से शरीर की सभी माँसपेशियों पर खिंचाव पड़ता है। पशिच्मोत्तासन आसन को आवश्यक आसनों में से एक माना गया है। शीर्षासन के बाद इसी आसन का महत्वपूर्ण स्थान है। इस आसन से मेरूदंड लचीला बनता है, जिससे कुण्डलिनी जागरण में लाभ होता है। यह आसन आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। पशिच्मोत्तासन के द्वारा मेरूदंड लचीला व मजबूत बनता है जिससे बुढ़ापे में भी व्यक्ति तनकर चलता है और उसकी रीढ़ की हड्डी झुकती नहीं है। यह मेरूदंड के सभी विकार जैसे- पीठदर्द, पेट के रोग, यकृत रोग, तिल्ली, आंतों के रोग तथा गुर्दे के रोगों को दूर करता है। इसके अभ्यास से शरीर की चर्बी कम होकर मोटापा दूर होता है तथा मधुमेह का रोग भी ठीक होता है। यह आसन स्त्रियों के लिए भी लाभकारी है। इस योगासन से स्त्रियों के योनिदोश, मासिक धर्म सम्बन्धी विकार तथा प्रदर आदि रोग दूर होते हैं। यह आसन गर्भाशय से सम्बन्धी शरीर के स्नायुजाल को ठीक करता है।
विधि:- 1. जमीन पर चटाई या दरी बिछाकर इस आसन का अभ्यास करें। चटाई पर पीठ के बल लेट जाएं और अपने दोनों पैर को फैलाकर रखें। दोनों पैरों को आपस में परस्पर मिलाकर रखें तथा अपने पूरे शरीर को बिल्कुल सीधा तान कर रखें।
2. दोनों हाथों को सिर की ओर ऊपर जमीन पर टिकाएं। अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाते हुए एक झटके के साथ कमर के ऊपर के भाग को उठा लें। इसके बाद धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों से पैरों के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें। ऐसा करते समय पैरों तथा हाथों को बिल्कुल सीधा रखें।
3. अगर आपको लेट कर यह आसन करने में परेशानी हो तो, इस आसान को बैठे बैठे भी किया जा सकता है। यह करते समय अपनी नाक को छूने की कोशिश करें। इस प्रकार यह क्रिया 1 बार पूरी होने के बाद 10 सैकेंड तक आराम करें और पुन: इस क्रिया को दोहराएं इस तरह यह आसन 3 बार ही करें। इस आसन को करते समय सांस सामान्य रूप से ले और छोड़ें।
लाभ:- इस आसन से शरीर की वायु ठीक रूप से काम करती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। जिस व्यक्ति को क्रोध अधिक आता हो उसे यह आसन करना चाहिए। इस से पूरे शरीर में खून का बहाव सही रूप से होता है। जिससे शरीर की कमजोरी दूर होकर शरीर सुदृढ़, स्फूर्तिदायक और हमेशा स्वस्थ रहता है। इस आसन को करने से बौनापन दूर होता है। पेट की चर्बी को कम करता है तथा नितम्बों का मोटापा दूर कर सुडौल बनाता है। यह आसन सफेद बालों को कम करके उन्हे काले व घने बनाता है। इसके अभ्यास से गुर्दे की पथरी, बहुमूत्र (जो मुख्य रूप से पैन्क्रियाल के कारण होता है) दूर होता है तथा यह बवासीर आदि रोगों में भी लाभकारी है। यह आसन वीर्य दोष को दूर करता है तथा कब्ज को दूर कर मल को साफ करता है।
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