एक बार हम ध्यान शिविर में बैठ के चर्चा कर रहे थे।

सामने बर्फ से ढके हिमालय की खूबसूरती और ताजी मनमोहक हवा हमारे मन को आनंदित कर रही थी।

पंचकेदार के पास एक बहुत ही खूबसूरत जगह है जहाँ हमारे गुरुजी ऐसे ध्यान शिविर कराते रहते हैं।

उस दिन गुरुजी किसी काम से बाहर थे और सबको ध्यान कराने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी।

दिल्ली के एक बड़े व्यापारी हम सबके साथ बैठ कर ध्यान सीख रहे थे।

उन्होंने मुझसे पूछा : क्या ध्यान योग से कोई भी शक्ति प्राप्त की जा सकती है? और कुछ भी किया जा सकता है?

मैंने कहा: हाँ ये संभव है, परंतु फिर आप आत्मज्ञान के पथ से भटक जाएंगे।

व्यापारी : अगर ऐसा है तो हिमालय के सिद्ध योगी भारत के प्रत्येक व्यक्ति को धनी क्यों नहीं बना देते?

मैंने हँसते हुए पूछा: आपको क्या लगता है, ईश्वर ने पहले ही ऐसा क्यों नहीं कर दिया?

व्यापारी: शायद सबको उनके कर्मों के हिसाब से मिल रहा है। पर अगर मैं अपने और परिवार के फायदे के लिए इसका इस्तेमाल करूँ तो उसमें क्या नुकसान है?

मैंने कहा: हर जगह फायदा - नुकसान नहीं देखा जाता। पहली बात ये है कि सिद्धि उनकी होती है जो अपनी सारी इच्छाओं को त्याग देते हैं। और सिद्ध पुरूष ये जानते हैं कि सृष्टि जैसी चल रही है, उसमें हमारे द्वारा किसी भी बदलाव की जरूरत नहीं है।

जो हो रहा है, वो इससे अच्छा नहीं हो सकता।

योग का अर्थ है, समस्त सृष्टि और सृष्टिकर्ता के साथ एक हो जाना।

वो लोग ध्यान नहीं लगा सकते जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ध्यान योग का सहारा ले रहे हैं।

ध्यान में तो खो जाना होता है। जब खुद की भी सुध न रहे तब ही ध्यान की शुरुआत होती है।

अगर आप और गहरे ध्यान में उतरना चाहते हैं तो आपको पूर्ण समर्पण करना पड़ता है।

इतना समर्पण कि अगर आज ही मृत्य हो जाये तो भी आप खुशी खुशी तैयार हैं अपने ईश्वर से एक हो जाने के लिए।

ऐसे योगी को कोई भी शक्ति दे दीजिए, वो उसमें दिलचस्पी नहीं लेंगे।

क्योंकि वो जानते हैं, इस संसार रूपी समंदर की सतह पर कितनी भी हलचल हो, सारी लहरें वापस उसी समंदर (परमात्मा) में ही मिल जाती हैं, जहाँ गहराई में कोई हलचल नहीं।

बस एक गहरा, विशाल और शांत (शून्य रूपी) समंदर है…निराकार शिव हैं।

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क्या योग और ध्यान से सबकुछ संभव है?