गोमुखासन आसन में व्यक्ति की आकृति गाय के मुख के समान बन जाती है इसीलिए इसे गोमुखासन कहते हैं। यह आसन आध्‍यात्मिक रूप से अधिक महत्‍व रखता है तथा इस आसन का प्रयोग स्‍वाध्‍याय एवं भजन, स्‍मरण आदि में किया जाता है। यह आसन पीठ दर्द, वात रोग, कंधे के कडे़ंपन, अपच तथा आंतों की बीमारियों को दूर करता है।

यह अंडकोष से संबन्धित रोगों को दूर करता है। यह आसन उन महिलाओं को अवश्‍य करना चाहिये, जिनके स्‍तन किसी कारण से छोटे तथा अविकसित रह गए हों। यह आसन स्‍त्रियों की सौंदर्यता को बढ़ाता है और यह प्रदर रोग में भी लाभकारी है।

गोमुखासन की विधि-

इस आसान को करने के लिए आप पहले सीधे दण्डासन में बेठकर बाये पेर को मोड़कर उसकी ऐड़ी को दाये नितंब के पास रखे उसी प्रकार दाये पैर को मोड़कर बाये पैर पर इस प्रकार रखे कि दोनों घुटने एक दूसरे को स्पर्श करते हुए हो। अथवा आप ऐड़ी पर वज्रासन कि स्थिति में भी बैठ सकते हें। अब दाये हाथ को उठाकर पीठ कि और मोड़िए तथा बाये हाथ को पीठ के पीछे से लेकर दाये हाथ को पकड़िये। ध्यान रहे गर्दन व कमर सीधी रहे एक और से एक मिनिट करने के पश्यात दूसरी और से इसी प्रकार करे।

सावधा‍नी-

हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डी में कोई गंभीर रोग हो तो यह आसन न करें। जबरदस्ती पीठ के पीछे हाथों के पंजों को पकड़ने का प्रयास न करें।

लाभ :

इससे हाथ-पैर की मांसपेशियां चुस्त और मजबूत बनती है। तनाव दूर होता है। कंधे और गर्दन की अकड़न को दूरकर कमर, कब्ज, पीठ दर्द आदि में भी लाभदायक। छाती को चौड़ा कर फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाता है जिससे श्वास संबंधी रोग में लाभ मिलता है। अंडकोष वृधि के लिए विशेष लाभदायक हें। यह आसन गठिया को दूर करने में भी असरकारी है।

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अंडकोष वृधि के लिए विशेष लाभदायक::गोमुखासन