आयुर्वेद अतिप्राचीन चिकित्सा पथ्दति है जिसे आज संपूर्ण विश्व मै मान्यता प्राप्त है आयुर्वेद मात्र औषधि चिकित्सा न होकर एक संपूर्ण स्वस्थ जीवन शैली हॅ । आयुर्वेदानुसार प्राकृतिक जीवन शैली अपनाने से शरीरगत् सप्तधातुआदि के पोषण एवं वात, पित्त, कफादि के समन्वय् से
शरीर उत्तम् स्वास्थ को प्राप्त करता है । इसके विपरित अप्राकृतिक जीवन शैलो का अनुसरण् करने से धातुगत छीणता एवं वात , पित्त, कफ मै बिषमता उत्पन्न होती है ।अधिक काल तक इन बिषमताओ के बने रहने से इनके शारिरिक व मानसिक
बाह्य लछ्ण् प्रकट् होते है जिन्हे हम रोग या ब्याधि के रूप मै जानते है । ह्दयरोग,मधुमेह,दमा छयादि शारिरिक एवं मिर्गी,हिश्टिरीयादि मानसिक रोग शरीर की आन्तरिक धातु, वात ,पित्त, कफगत् बिषमताओ के बाहय् प्रकट् लछण् है ।
आधुनिक चिकित्सा प्रणालियो मै रोग के बाहरी लछण् को मूल ब्याधि मानकर् उसे दबा दिया जाता है इससे बाहय् लछण् तो कुछ समय के लिये दब जाता है किन्तु मूल बिषमताए बनी रहती है । इसके विपरीत आयुर्वेद मै रोग के बाहय् लछणो को
गौण मानकर् ब्याधि के मूल मै आइ बिषमताओ का निराकरण कर तन एवं मन को पुर्व की भाति पूर्णतह् स्वस्थ्य प्रदान किया जाता है।