ओशो नटराज ध्‍यान

ओशो नटराज ध्‍यान ओशो के निर्देशन में तैयार किए गए संगीत के साथ किया जा सकता है। यह संगीत ऊर्जा गत रूप से ध्‍यान में सहयोगी होता है। और ध्‍यान विधि के हर चरण की शुरूआत को इंगित करता है।

नृत्‍य को अपने ढंग से बहने दो; उसे आरोपित मत करो। बल्‍कि उसका अनुसरण करो, उसे घटने दो। वह कोई कृत्‍य नहीं, एक घटना है। उत्‍सवपूर्ण भाव में रहो, तुम कोई बड़ा गंभीर काम नहीं कर रहे हो; बस खेल रहे हो। अपनी जीवन ऊर्जा से खेल रहे हो, उसे अपने ढंग से बहने दे रहे हो। उसे बस ऐसे जैसे हवा बहती है और नदी बहती है, प्रवाहित होने दो……तुम भी प्रवाहित हो रहे हो, बह रहे हो, इसे अनुभव करो।

ओशो नाद ब्रह्म ध्‍यान

ओशो नाद ब्रह्म ध्‍यान नाद ब्रह्म एक प्राचीन तिब्‍बती विधि है जिसे सुबह ब्रह्ममुहूर्त में किया जाता रहा है। अब इसे दिन में किसी भी समय अकेले या अन्‍य लोगों के साथ किया जा सकता है। पेट खाली होना चाहिए और इस ध्‍यान के बाद पंद्रह मिनट तक विश्राम करना जरूरी है। यह ध्‍यान एक घंटे का है और इसके तीन चरण है।

ओशो गौरीशंकर ध्यान

इस विधि में पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार चरण है। पहले दो चरण साधक को तीसरे चरण में सहज लाती हान के लिए तैयार कर देते है।

ओशो ने बताया है कि यदि पहले चरण में श्‍वास-प्रश्‍वास को ठीक से कर लिया जाए तो रक्‍त प्रवाह में निर्मित कार्बनडाइऑक्साइड के कारण आप स्‍वयं को गौरी शंकर जितना ऊँचा अनुभव करेंगे।

ओशो डाइनैमिक ध्यान

ओशो डाइनैमिक ध्‍यान ओशो के निर्देशन में तैयार किए गए संगीत के साथ किया जाता है। यह संगीत ऊर्जा गत रूप से ध्‍यान में सहयोगी होता है और ध्‍यान विधि के हर चरण की शुरूआत को इंगित करता है|

निर्देश—
डायनमिक ध्‍यान आधुनिक मनुष्‍य को ध्‍यान अपलब्‍ध करवाने के लिए ओशो के प्रमुख योगदानों में से एक है।

जलनेति

जलनेति एक महत्वपूर्ण शरीर शुद्धि योग क्रिया है जिसमें पानी से नाक की सफाई की जाती और आपको साइनस, सर्दी, जुकाम , पोल्लुशन, इत्यादि से बचाता है। जलनेति में नमकीन गुनगुना पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पानी को नेटिपोट से नाक के एक छिद्र से डाला जाता है और दूसरे से निकाला जाता है। फिर इसी क्रिया को दूसरी नॉस्ट्रिल से किया जाता है। अगर संक्षेप में कहा जाए तो जलनेति एक ऐसी योग है जिसमें पानी से नाक की सफाई की जाती है और नाक संबंधी बीमारीयों से आप निजात पाते हैं। जलनेति दिन में किसी भी समय की जा सकती है। यदि किसी को जुकाम हो तो इसे दिन में कई बार भी किया जा सकता है। इसके लगातार अभ्

त्राटक क्रिया

त्राटक शब्द का उत्पत्ति ‘त्रा’ से हुआ है, जिसका अर्थ है मुक्त करना। यह क्रिया आँखों को साफ करने एवम नेत्रों की रोशनी बढ़ाने के लिए की जाती है। इस क्रिया में आप नेत्रों को सामान्य रूप से किसी निश्चित वस्तु पर केंद्रित करते हैं जो दीपक या जलती हुई मोमबत्ती की लौ हो सकती है। चुनी हुई वस्तु को तब तक देखते रहें जब तक आंखों में पानी नहीं आ जाए या आपके आँख दर्द न करने लगे। जब पानी आ जाए या दर्द करने लगे तो आँखों को बंद करे और फिर सामान्य स्थिति में आकर इसे खोलें। अगर सही माने में देखा जाए तो आँखों को सेहतमंद रखने के लिए यह एक उम्दा योगाभ्यास है। आज हम आपको षट्कर्म की  त्

अग्निसारा क्रिया


अग्निसार क्रिया प्राणायाम का एक प्रकार है। "अग्निसार क्रिया" से शरीर के अन्दर अग्नि उत्पन होती है, जो कि शरीर के अन्दर के रोगाणु को भस्म कर देती है। इसे प्लाविनी क्रिया भी कहते हैं।

अग्निसार पेट की चर्बी कम करने के लिए बहुत ही प्रभावी योगाभ्यास है। खास कर गर्भावस्था के बाद महिलाएं अच्छा खास वजन धारण कर लेती हैं। यह क्रिया वैसे महिलाओं के लिए बहुत ही सटीक योगाभ्यास है। ध्यान रहे ऐसी महिलाओं को इस योग का प्रैक्टिस किसी विशेषज्ञ के निरीक्षण में  ही करनी चाहिए। इसका नियमित रूप से अभ्यास करने  पर सिर्फ पेट की चर्बी ही कम नहीं होता बल्कि आप अपने वजन को भी कम कर सकतें हैं।

शंख प्रक्षालन

प्राकृतिक चिकित्सा में आंतों एवं संपूर्ण शरीर में इकट्ठा विजातीय द्रव्य के निष्कासन के साथ-साथ बिगड़ी हुई पाचन प्रणाली को ठीक करने का सर्वोपरि स्थान है। यदि हम अपना खान-पान दुरुस्त रखें व पाचन प्रणाली संबंधी परेशानियों जैसे कब्ज आदि न होने दें तो हम जीवन पर्यन्त स्वस्थ रहेंगे। विजातीय द्रव्यों के निष्कासन एवं पाचन संबंधी परेशानियों को समूल नष्ट करने में प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत, यौगिक प्रक्रिया शंख प्रक्षालन का महत्वपूर्ण स्थान है। आंतों के शंख जैसे आकार एवं इसमें उपस्थित वायु की ओर संकेत करता है एवं 'प्रक्षालन' का अर्थ है पूर्ण सफा

कुंजल क्रिया

कुंजल क्रिया का अर्थ और कार्य 

कुंजल क्रिया में पारंगत व्यक्ति के जीवन में कभी भी कोई रोग और शोक नहीं रह जाता। यह क्रिया वास्तव में बहुत ही शक्तिशाली है। पानी से पेट को साफ किए जाने की क्रिया को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया से पेट व आहार नली साफ हो जाती है। मूलत: यह क्रिया वे लोग कर सकते हैं जो धौति क्रिया नहीं कर सकते हों। इस क्रिया को किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।


कुंज क्रिया की विधि  

सूत्र नेति क्रिया

सूत्र नेति का अर्थ और करने का तरीका 

सूत्र नेति क्रिया में आप अपने शरीर का अगर आप शुद्धिकरण करना चाहते हो, तो उसका सबसे आसन तरीका होता है सूत्र नेति। इस मानव रूपी यंत्र को क्रियाशील बनाये रखने के लिए इसकी सफाई और शोधन की आवश्कता होती है। मनुष्य के शरीर रूपी यंत्र का बाह्य शोधन आसन के जरिये हो जाता है। शोधन करने के लिए हमें अनेक प्रकार की क्रिया को करना पड़ता है। नासिका के द्वारा सांस ली जाती है, जो हमारे प्राणों के लिए बहुत ही आवश्क है। मानव को प्रणायाम के बाद क्रियाओ को भी करना सीखना चाहिए, ये क्रिया थोड़ी कठिन आवश्य होती है, लेकिन जब हम नियमित रूप से करते हैं, तो इसे धीरे-धीरे

Subscribe to