![लिंग मुद्रा लिंग मुद्रा](/sites/swamiyoga.in/files/styles/wide/public/mudra/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE.jpg.webp?itok=q3EGB2Um)
लिंग मुद्रा एक ऐसी मुद्रा है जिसमें हथेली को इंटरलॉक करके शरीर के भीतर विभिन्न तत्वों पर ध्यान केंद्रित करने और उनके प्रवाह को बनाए रखने में सक्षम होती है। हाथ का अंगूठा मनुष्य के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतीक होता है। लिंग मुद्रा अग्नि तत्व को मजबूत बनाने का कार्य करती है। आमतौर पर लिंग मुद्रा को ऊष्मा और ऊर्जा की मुद्रा कहा जाता है। लिंग संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ पुरुष के जननांग से है। लिंग मुद्रा शरीर की ऊष्मा ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करती है। लिंग मुद्रा, शरीर के भीतर गर्मी को केंद्रित करने काम करती है। इसे लिंग मुद्रा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह शरीर के अंदर के अग्नि के तत्व पर ध्यान केंद्रित करके शरीर की गर्मी को बढ़ाती है। आमतौर पर हिंदू धर्म में लिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। लेकिन यह एक योग मुद्रा है जिसमें अंगूठे से लिंग के समान आकृति बनती है। लिंग मुद्रा को आध्यात्म से भी जोड़कर देखा जाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि इस मुद्रा का अभ्यास करते थे, लेकिन लिंग मुद्रा का महत्व आज भी उतना ही है। यह शरीर के अग्नि तत्व को संतुलित रखने का कार्य करती है इसलिए निरोगी रहने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को लिंग मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए।
लिंग मुद्रा करने की विधि-
- सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
- अब अपने दोनो हाथों की उंगलियों को आपस में फँसाकर सीधे हाथ के अंगूठे को बिल्कुल सीधा रखेंगे यही लिंग मुद्रा कहलाती है ।
- आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
- अपने मन को अपनी श्वांस गति पर व मुद्रा पर केंद्रित रखिए।
लिंग मुद्रा करने की लाभ-
- बलगम व खाँसी में लाभप्रद।
- शरीर में गर्मी उत्पन्न करती है व मोटापे को कम करती है।
- श्वसन तंत्र को मजबूत करती है।
लिंग मुद्रा करने की विधि :
- किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ |
- दोनों हाथों की अँगुलियों को परस्पर एक-दूसरे में फसायें (ग्रिप बनायें) |
- किसी भी एक अंगूठे को सीधा रखें तथा दूसरे अंगूठे से सीधे अंगूठे के पीछे से लाकर घेरा बना दें |
लिंग मुद्रा करने की सावधानियाँ :
- लिंग मुद्रा से शरीर मे गर्मी उत्पन्न होती है,इसलिए इस मुद्रा को करने के पश्चात् यदि गर्मी महसूस हो तो तुरंत पानी पी लेना चाहिए |
- लिंग मुद्रा को नियत समय से अधिक नही करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि संभव है |
- गर्मी के मौसम में इस मुद्रा को अधिक समय तक नहीं करना चाहिए |
- पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को लिंग मुद्रा नही करनी चाहिए |
लिंग मुद्रा करने का समय व अवधि :
- लिंग मुद्रा को प्रातः-सायं 16-16 मिनट तक करना चाहिए |
लिंग मुद्रा करने की चिकित्सकीय लाभ :
- सर्दी से ठिठुरता व्यक्ति यदि कुछ समय तक लिंग मुद्रा कर ले तो आश्चर्यजनक रूप से उसकी ठिठुरन दूर हो जाती है |
- लिंग मुद्रा के अभ्यास से जीर्ण नजला,जुकाम, साइनुसाइटिस,अस्थमा व निमन् रक्तचाप का रोग नष्ट हो जाता है | इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से कफयुक्त खांसी एवं छाती की जलन नष्ट हो जाती है |
- यदि सर्दी लगकर बुखार आ रहा हो तो लिंग मुद्रा तुरंत असरकारक सिद्ध होती है |
- लिंग मुद्रा के नियमित अभ्यास से अतिरिक्त कैलोरी बर्न होती हैं परिणाम स्वरुप मोटापा रोग समाप्त हो जाता है |
- लिंग मुद्रा पुरूषों के समस्त यौन रोगों में अचूक है । इस मुद्रा के प्रयोग से स्त्रियों के मासिक स्त्राव सम्बंधित अनियमितता ठीक होती हैं |
- लिंग मुद्रा के अभ्यास से टली हुई नाभि पुनः अपने स्थान पर आ जाती हैं |
लिंग मुद्रा करने की आध्यात्मिक लाभ :
- यह मुद्रा पुरुषत्व का प्रतीक है इसीलिए इसे लिंग मुद्रा कहा जाता है।
- लिंग मुद्रा के अभ्यास से साधक में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है |
- यह मुद्रा ब्रह्मचर्य की रक्षा करती है , व्यक्तित्व को शांत व आकर्षक बनाती है जिससे व्यक्ति आन्तरिक स्तर पर प्रसन्न रहता है ।