साप्ताहिक ध्यान :"मैं यह नहीं हूं'
मन कचरा है! ऐसा नहीं है कि आपके पास कचरा है और दूसरे के पास नहीं है। मन ही कचरा है। और अगर आप कचरा बाहर भी फेंकते रहें, तो जितना चाहे फेंकते रह सकते हैं, लेकिन यह कभी खतम होने वाला नहीं है। यह खुद ही बढ़ने वाला कचरा है। यह मुर्दा नहीं है, यह सकि"य है। यह बढ़ता रहता है और इसका अपना जीवन है, तो अगर हम इसे काटें तो इसमें नई पत्तियां अंकुरित होने लगती हैं।
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