अवधान को बढ़ा - ओशो

 जहां कहीं भी तुम्हारा अवधान उतरे, उसी बिंदु पर, अनुभव।

 

इस विधि में सबसे पहले तुम्हें अवधान साधना होगा, अवधान का विकास करना होगा। तुम्हें एक भांति का अवधानपूर्ण रुख, रुझान विकसित करना होगा; तो ही यह विधि संभव होगी। और तब जहां कहीं भी तुम्हारा अवधान उतरे, तुम अनुभव कर सकते हो-स्वयं को अनुभव कर सकते हो। एक फूल को देखने भर से तुम स्वयं को अनुभव कर सकते हो। तब फूल को देखना सिर्फ फूल को ही देखना नहीं है वरन देखने वाले को भी देखना है। लेकिन यह तभी संभव है जब तुम अवधान का रहस्य जान लो।

 

स्टॉप! - ओशो

जैसे ही कुछ करने की वृत्ति हो, रुक जाओ।

 

तुम कहीं भी इसका प्रयोग कर सकते हो। तुम स्नान कर रहे हो; अचानक अपने को कहो: स्टॉप! अगर एक क्षण के लिए भी यह एकाएक रुकना घटित हो जाए तो तुम अपने भीतर कुछ भिन्न बात घटित होते पाओगे। तब तुम अपने केंद्र पर फेंक दिए जाओगे। और तब सब कुछ ठहर जाएगा। तुम्हारा शरीर तो पूरी तरह रुकेगा ही, तुम्हारा मन भी गति करना बंद कर देगा।

 

गर्भ की शांति पायें - ओशो

जब भी तुम्हारे पास समय हो, बस मौन में निढाल हो जाओ, और मेरा अभिप्राय ठीक यही है-निढाल, मानो कि तुम एक छोटे बच्चे हो अपनी मा के गर्भ में

फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठ जाओ और धीरे-धीरे अपना सिर भी फर्श पर लगाना चाहोगे, तब सिर फर्श पर लगा देना। गर्भासन में बैठ जाना जैसे बच्चा अपनी मां के गर्भ में अपने अंगों को सिमटाकर लेटा होता है। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि मौन उतर रहा है, वही मौन जो मां के गर्भ में था।

प्रार्थना ध्‍यान - ओशो

अच्‍छा हो कि यह प्रार्थना ध्‍यान आप रात में करो। कमरे में अंधकार कर ले। और ध्‍यान खत्‍म होने के तुरंत बाद सो जाओ। या सुबह भी इसे किया जा सकता है, परंतु उसके बाद पंद्रह मिनट का विश्राम जरूर करना चाहिए। वह विश्राम अनिवार्य है, अन्‍यथा तुम्‍हें लगेगा कि तुम नशे में हो, तंद्रा में हो।

उर्जा में यह निमज्‍जन ही प्रार्थना ध्‍यान है। यह प्रार्थना तुम्‍हें बदल डालती है। और जब तुम बदलते हो तो पूरा अस्‍तित्‍व भी बदल जाता है।

ओशो नटराज ध्‍यान

ओशो नटराज ध्‍यान ओशो के निर्देशन में तैयार किए गए संगीत के साथ किया जा सकता है। यह संगीत ऊर्जा गत रूप से ध्‍यान में सहयोगी होता है। और ध्‍यान विधि के हर चरण की शुरूआत को इंगित करता है।

नृत्‍य को अपने ढंग से बहने दो; उसे आरोपित मत करो। बल्‍कि उसका अनुसरण करो, उसे घटने दो। वह कोई कृत्‍य नहीं, एक घटना है। उत्‍सवपूर्ण भाव में रहो, तुम कोई बड़ा गंभीर काम नहीं कर रहे हो; बस खेल रहे हो। अपनी जीवन ऊर्जा से खेल रहे हो, उसे अपने ढंग से बहने दे रहे हो। उसे बस ऐसे जैसे हवा बहती है और नदी बहती है, प्रवाहित होने दो……तुम भी प्रवाहित हो रहे हो, बह रहे हो, इसे अनुभव करो।

ओशो नाद ब्रह्म ध्‍यान

ओशो नाद ब्रह्म ध्‍यान नाद ब्रह्म एक प्राचीन तिब्‍बती विधि है जिसे सुबह ब्रह्ममुहूर्त में किया जाता रहा है। अब इसे दिन में किसी भी समय अकेले या अन्‍य लोगों के साथ किया जा सकता है। पेट खाली होना चाहिए और इस ध्‍यान के बाद पंद्रह मिनट तक विश्राम करना जरूरी है। यह ध्‍यान एक घंटे का है और इसके तीन चरण है।

ओशो गौरीशंकर ध्यान

इस विधि में पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार चरण है। पहले दो चरण साधक को तीसरे चरण में सहज लाती हान के लिए तैयार कर देते है।

ओशो ने बताया है कि यदि पहले चरण में श्‍वास-प्रश्‍वास को ठीक से कर लिया जाए तो रक्‍त प्रवाह में निर्मित कार्बनडाइऑक्साइड के कारण आप स्‍वयं को गौरी शंकर जितना ऊँचा अनुभव करेंगे।

ओशो डाइनैमिक ध्यान

ओशो डाइनैमिक ध्‍यान ओशो के निर्देशन में तैयार किए गए संगीत के साथ किया जाता है। यह संगीत ऊर्जा गत रूप से ध्‍यान में सहयोगी होता है और ध्‍यान विधि के हर चरण की शुरूआत को इंगित करता है|

निर्देश—
डायनमिक ध्‍यान आधुनिक मनुष्‍य को ध्‍यान अपलब्‍ध करवाने के लिए ओशो के प्रमुख योगदानों में से एक है।

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