उगते सूरज की प्रशंसा में - ओशो

सूर्योदय से पहले पांच बजे उठ जाएं और आधे घंटे तक बस गाएं, गुनगुनाएं, आहें भरें, कराहें। इन आवाजों का कोई अर्थ होना जरूरी नहीं--ये अस्तित्वगत होनी चाहिए, अर्थपूर्ण नहीं। इनका आनंद लें, इतना काफी है--यही इनका अर्थ है। आनंद से झूमें। इसे उगते हुए सूरज की स्तुति बनने दें और तभी रुकें जब सूरज उदय हो जाए।

इससे दिन भर भीतर एक लय बनी रहेगी। सुबह से ही आप एक लयबद्धता अनुभव करेंगे और आप देखेंगे कि पूरे दिन का गुणधर्म ही बदल गया है--आप ज्यादा प्रेमपूर्ण, ज्यादा करुणापूर्ण, ज्यादा जिम्मेवार, ज्यादा मैत्रीपूर्ण हो गए हैं ; और आप अब कम हिंसक, कम क्रोधी, कम महत्वाकांक्षी, कम अहंकारी हो गए हैं।

संतुलन ध्यान - ओशो

लाओत्से के साधना-सूत्रों में एक गुप्त सूत्र आपको कहता हूं, जो उसकी किताबों में उलेखित नहीं है, लेकिन कानों-कान लाओत्से की परंपरा में चलता रहा है। वह सूत्र है लाओत्से की ध्यान की पद्धति का। वह सूत्र यह है।

 

ध्यान :"मैं यह नहीं हूं' - ओशो

मन कचरा है! ऐसा नहीं है कि आपके पास कचरा है और दूसरे के पास नहीं है। मन ही कचरा है। और अगर आप कचरा बाहर भी फेंकते रहें, तो जितना चाहे फेंकते रह सकते हैं, लेकिन यह कभी खतम होने वाला नहीं है। यह खुद ही बढ़ने वाला कचरा है। यह मुर्दा नहीं है, यह सकि"य है। यह बढ़ता रहता है और इसका अपना जीवन है, तो अगर हम इसे काटें तो इसमें नई पत्तियां अंकुरित होने लगती हैं।

 

संयम साधना - ओशो

कृष्ण ने दो निष्ठाओं की बात कही है।

एक वे, जो इंद्रियों का संयम कर लेते हैं। जो इंद्रियों को विषय की तरफ--विषयों की तरफ इंद्रियों की जो यात्रा है, उसे विदा कर देते हैं; यात्रा ही समाप्त कर देते हैं। जिनकी इंद्रियां विषयों की तरफ दौड़ती ही नहीं हैं। संयम का अर्थ समझेंगे, तो खयाल में आए। दूसरे वे, जो विषयों को भोगते रहते हैं, फिर भी लिप्त नहीं होते। ये दोनों भी यज्ञ में ही रत हैं।

कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना - ओशो

सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि तुम बहुत प्रसन्न हो। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें-- आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण-- जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। अपने बिस्तर से बहुत विधायक व आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा-- कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं।

काम ऊर्जा से मुक्ति - ओशो

जब काम ऊर्जा वैसी नहीं बह रही जैसी बहनी चाहिए, तो यह बहुत सी समस्याएं पैदा करती है।

 

यदि काम ऊर्जा बिल्कुल सही बह रही है तब हर चीज सही गूंजेगी, हर चीज लयबद्ध रहती है। तब तुम सरलता से सुर में हो और एक किस्म का तारतम्य होगा। एक बार काम ऊर्जा कहीं अटक जाती है तो सारे शरीर पर प्रभाव होते हैं। और पहले वे दिमाग में आएंगे हैं, क्योंकि सेक्स और दिमाग विपरीत धुरी हैं। 

 

मौन का रंग - ओशो

जब भी आपको नीले रंग का कोई दृश्य दिखे--आकाश का नीलापन या नदी का नीलापन--तो बस शांत बैठ जाएं और उसकी नीलिमा में देखते रहें। और आपको एक गहन शांति अनुभव होगी। जब भी आप नीले रंग पर ध्यान करेंगे, एक गहन शांति आप पर उतर आएगी।

 

नीला रंग सबसे अधिक आध्यात्मिक रंगों में से एक है, क्योंकि वह शांति का, मौन का रंग है। वह थिरता का, विश्राम का, लीनता का रंग है। तो जब भी आप गहन शांति में होते हैं, अचानक आप भीतर एक नीली ज्योति महसूस करेंगे। और यदि आप अपने भीतर नीली ज्योति का भाव करें तो आप एकदम शांत महसूस करेंगे। यह दोनों तरफ से काम करता है।

श्वास को विश्रांत करें - ओशो

जब भी आपको समय मिले, कुछ देर के लिए श्वास-प्रक्रिया को शिथिल कर दें। और कुछ नहीं करना है--पूरे शरीर को शिथिल करने की कोई जरूरत नहीं है। रेलगाड़ी में, हवाई जहाज में या कार में बैठे हैं, किसी और को मालूम भी नहीं पड़ेगा कि आप कुछ कर रहे हैं। बस श्वास-प्रक्रिया को शिथिल कर दें। जैसे वह सहज चलती है, वैसे चलने दें। फिर आंखें बंद कर लें और श्वास को देखते रहें--भीतर गई, बाहर आई, भीतर गई।

अनुभव करें, विचारें नहीं - ओशो

तुम बगीचे में बैठे हो और सड़क पर ट्रैफिक है, शोरगुल है और तरहत्तरह की आवाजें आ रही हैं। तुम अपनी आंखें बंद कर लो और वहां होने वाली सबसे सूक्ष्म आवाज को पकड़ने की कोशिश करो। कोई कौआ कांव-कांव कर रहा है; कौए की इस कांव-कांव पर अपने को एकाग्र करो। सड़क पर यातायात का भारी शोर है, इसमें कौए की आवाज इतनी धीमी है, इतनी सूक्ष्म है कि जब तक तुम अपने बोध को उस पर एकाग्र नहीं करोगे तुम्हें उसका पता भी नहीं चलेगा। लेकिन अगर तुम एकाग्रता से सुनोगे तो सड़क का सारा शोरगुल दूर हट जाएगा और कौए की आवाज केंद्र बन जाएगी। और तुम उसे सुनोगे, उसके सूक्ष्म भेदों को भी सुनोगे। वह बहुत सूक्ष्म है, लेकिन तुम उसे सुन पाओग

अपने हृदय में शांति का अनुभव करें - ओशो

यह बड़ी सरल विधि है, परंतु चमत्कारिक ढंग से कार्य करती है। कोई भी इसे कर सकता है। अपनी आंखें बंद कर लो और दोनों कांखों के बीच के स्थान को महसूस करो; हृदय-स्थल को, अपने वक्षस्थल को महसूस करो। पहले केवल दोनों कांखों के बीच अपना पूरा अवधान लाओ, पूरे होश से महसूस करो। पूरे शरीर को भूल जाओ और बस दोनों कांखों के बीच हृदय-क्षेत्र और वक्षस्थल को देखो, और उसे अपार शांति से भरा हुआ महसूस करो। जिस क्षण तुम्हारा शरीर विश्रांत होता है तुम्हारे हृदय में स्वतः ही शांति उतर आती है। हृदय मौन, विश्रांत और लयबद्ध हो जाता है। और जब तुम अपने सारे शरीर को भूल जाते हो और अवधान को बस वक्षस्थल पर ले आते हो और उसे श

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