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महामुद्रा की विधि

महा बन्ध

जब साधक योग के अन्तरंग साधन में प्रविष्ट होता है, तय उसे अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होने लगते हैं, प्रत्याहार, धारण, ध्यान और समाधि इन चारों को योग के अंतरंग साधन कहते हैं, प्रत्याहार और धारणादि के अभ्यास काल में कुँडलिनी शक्ति जाग्रत करनी पड़ती हैं, कुण्डलिनी शक्ति के उत्थान के समय में और होने के पश्चात् साधक की बुद्धि अत्यन्त तीव्र हो जाती है, शरीर अत्यन्त तेजोमय बनता है, कुण्डलिनी उत्थान के लिये खेचरी मुद्रा, महामुद्रा, महाबन्ध मुद्रा, महावेद मुद्रा, विपरीत करणी मुद्रा, ताडन मुद्रा, परिधान युक्ति, परिचालन मुद्रा और शक्ति चालन मुद्रा आदि उत्कृष्ट अनेक मुद्राओं का अभ्यास करना पड़ता है। आगे